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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-७०

उनके कहने के अनुसार भोगटेजी रिव्हिएरा में गये । दिवाणखाने में बैठकर वे अखबार पढने लगे इतने में यशवंतरावजी आये । उनके कंधेवर हाथ रखकर वे सीढी उतर गये ।  हम बॉम्बे हॉस्पिटल में गए । महेश्वर ठाकूरजी वहाँ ही थे । यशवंतरावजी को लेकर वे और मैं भीतर गये । पाटीलजी की वह दशा देखकर यशवंतरावजी गद्गद हो गये ।  पाँच-सात मिनट उन्होंने उसी अवस्था में इधर उधर घूमकर पाटीलजी को निहारा और नजर से उन्होंने मुझे बाहर निकलने के लिए कहा । दरवाजे के बाहर आते ही गद्गद हुए यशवंतरावजी अपनी सिसकी काबू में नहीं रख सके । 'महाराष्ट्र का सिंह आज ऐसा अगतिक होकर पडे यह हमारा दुर्दैव है, दुर्भाग्य है ।' इन्ही शब्दों में उन्होंने अपना मनोगत व्यक्त किया और दरवाजे के बाहर आये लोगों को नमस्कार करके मेरे कंधे पर हाथ रखकर निकल पडे ।

यशवंतरावजी पर लिखते समय यह प्रसंग मैंने इसलिए लिखा है कि - 'यशवंतरावजी और आप्पासाहेब पाटीलजी इन दोनों में बहुत शत्रुत्व था । वे एक दूसरे की ओर भी नहीं देखते, ऐसे जो लोग कहते थे उन्हें मालूम होगा कि यशवंतरावजी कितने कोमल हृदय के थे, कितने भावुक थे ।' अप्पासाहेब पाटीलजी उम्र से बडे थे और नेतृत्वगुणसंपन्न भी  थे । ऐसे मराठी मनुष्य के बारे में यशवंतरावजी को बहुत आदर होता था ।

यशवंतरावजी बडे हुए गुणपूजक वृत्ति के कारण । लोकमान्यजी तिलक के बाद लूले पडे हुए, अपाहिज पडे हुए महाराष्ट्र में काँग्रेस को सच्चा नेतृत्व दिया यशवंतरावजीने और आज बहुजन समाज जिस शान से महाराष्ट्रीय राजनीति में विचरता है वह भी यशवंतरावजी की दूरदृष्टि के कारण ।

परिवार की जिम्मेदारी

पार्लमेंटरी सेक्रेटरी के पद पर रहकर यशवंतरावजी काम कर रहे थे । उनका शरीर बम्बई में और मन कराड में । बम्बई राज्य का कारोबार करते समय उनकी द्विधा मनःस्थिति हो गयी थी । परमप्रिय बडे बंधु गणपतरावजी को क्षय की बीमारी हो गयी थी । उनकी सेवा करते समय उनकी पत्‍नी को संसर्गजन्य बीमारी हो गयी थी । इन दोनों की सेवा करते समय वेणूताईजी को क्षय की बाधा हुई थी । १९४७ के दिसंबर महिने में गणपतरावजी का निधन हो गया था । दो वर्षों में गणपतरावजी की पत्‍नी का भी निधन हो गया था । गणपतरावजी के लडकों की अर्थात भतीजों की जिम्मेदारी यशवंतरावजी पर आ पडी । क्षय की बीमारीसे वेणूताईजी की तबीयत बिगड गयी थी । ऐसी आपत्ति के घेरे में यशवंतरावजी फँस गये थे । मिरज के डॉ. जॉन्सन इस मिशनरी डॉक्टर से वेणूताईजी की बीमारी दूर हो गयी ।