• 001_Krishnakath.jpg
  • 002_Vividhangi-Vyaktimatva-1.jpg
  • 003_Shabdhanche.jpg
  • 004_Mazya-Rajkiya-Athwani.jpg
  • 005_Saheb_14.jpg
  • 006_Yashodhan_76.jpg
  • 007_Yashodharshan.jpg
  • 008_Yashwant-Chintanik.jpg
  • 009_Kartrutva.jpg
  • 010_Maulik-Vichar.jpg
  • 011_YCHAVAN-N-D-MAHANOR.jpg
  • 012_Sahyadricheware.jpg
  • 013_Runanubandh.jpg
  • 014_Bhumika.jpg
  • 016_YCHAVAN-SAHITYA-SUCHI.jpg
  • 017_Maharashtratil-Dushkal.jpg
  • Debacle-to-Revival-1.jpg
  • INDIA's-FOREIGN-POLICY.jpg
  • ORAL-HISTORY-TRANSCRIPT.jpg
  • sing_3.jpg

अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-६९

देश-प्रेम, स्वातंत्र्यप्रियता और मित्र-प्रेम

सुबह के ११-३० बजे थे । कराड के तिलक हायस्कूल में पाँचवी कक्षा के शिक्षक विद्यार्थियों को पाठ पढा रहे थे । गोगटेजी और यशवंतरावजी एक ही बेंचपर बैठे थे ।  इतने में हायस्कूल के अहाते में एक बडी भीड आयी । 'महात्मा गांधीजी की जय' ऐसी घोषणा सुनने में आयी । उसने मुझे इशारा किया और 'महात्मा गांधीजी की जय' ऐसी घोषणा देते हुए वह कक्षा के बाहर चला गया । वह बडे जोर से घोषणा देने लगा ।  क्षणभर में हायस्कूल के सभी लडके कक्षा छोडकर बाहर आये । गोगटेजी कहते हैं कि मेरे पास बैठा हुआ लडका तुरंत नीम के पेड पर चढा और उसने पेडपर राष्ट्रीय तिरंगा झंडा फहराया । सबने बडा जयघोष किया और तिलक हाइस्कूल में झंडा फहराने के बाद वहाँ ही बडी सभा हुई । उसने सभा में उत्कृष्ट भाषण किया । सभी वातावरण राष्ट्रप्रेम से प्रभावित हुआ । उसके भाषण का तरुण मन पर परिणाम हुआ । सभी के मन में राष्ट्रप्रेम का स्फुल्लिंग जागृत किया । इन तरुणों ने मेरे मित्र को अपना नेता माना ।  वह मित्र अर्थात यशवंतरावजी चव्हाण जिसने आगे चलकर महाराष्ट्र का नेतृत्व किया और मुख्यमंत्री के रूप में महाराष्ट्र का रथ-सारथ्य किया ।

बॉम्बे हॉस्पिटल में श्री. बा. म. गोगटेजी स्लीप डिस्क की वेदना से व्याकुल थे ।  यशवंतरावजी परदेश दौरा करके लौट आये । उन्होने सुबह के अखबार में पढा कि उनका मित्र गोगटे बीमार है । यशवंतरावजी तुरंत बॉम्बे हॉस्पिटल में जाकर उससे मिले । उस मित्र प्रेम का महत्त्व क्या कहे ?

गोगटेजी कहते है कि - 'हर एक चुनाव के समय मैं और उषा हमारे मित्र से मिलने के लिए सातारा जाते थे । जाते समय वे प्रसाद के रूप में शिरा और दाल लेकर जाते थे ।  भेट होने के बाद तीनों आनंद से खाते थे । तब मेरा मित्र कहता था, मधु, तू और उषा यह परमेश्वर का प्रसाद ही लें आते । दिल्ली में उनके बंगले में से बाहर आते समय मेरे मित्र यशवंतरावजीने कहा, 'अगले सप्ताह में तुम दोनों शुभ प्रसाद लेकर सातारा आओ ।'  लेकिन दुर्भाग्यसे यह हुआ नहीं । यशवंतरावजी ने सातारा के समर्थ साप्ताहिक के संपादक श्री. अनंतरावजी कुलकर्णी को पत्र लिखा था । यह पत्र १९ मई १९७५ का है ।  यशवंतरावजी ने उस पत्र में मित्रता का अर्थ कहा है - 'पैतालीस वर्षों की तुम्हारी और मेरी मित्रता है । वह मित्रता तुमने अब तक सुरक्षित रखी है । तुमने आशा से कुछ नहीं किया । तुमने स्वच्छ और निर्मल भाव से मित्रता की है ।' यशवंतरावजीने 'कृष्णाकाठ' में अनंतरावजी की मित्रत्व का उल्लेख किया । उस में भी उन्होंने मित्रत्व का गौरव किया है ।

श्री. स. का. पाटीलजी बॉम्बे हॉस्पिटल में अत्यवस्थ थे । हम कुछ लोग श्री. ए. आर. सुलेजी के साथ बारी बारी से वहाँ बैठते थे । रात आठ बजे के बाद मैं घर वापस आया था । पाँच-छः दिन से पाटीलजी अत्यवस्थ थे । भेट के लिए आनेवाले लोगों को वे पहचान नहीं सकते थे । एक रात में 'नवसंदेश' के संपादक श्री. रमेश भोगटेजी को यशवंतरावजी का फोन आया कि 'अहमदनगर में श्री. अण्णासाहेब शिंदेजी की लडकी का विवाह है । मैं कल सुबह हवाई जहाजसे जाकर आता हूँ । परसो सुबह आठ बजने के पहले रिव्हिएरा में आओ । हम वहाँ से बॉम्बे हॉस्पिटल में जायेंगे ।'