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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-६४

महाराष्ट्र राज्य

महाराष्ट्र राज्य निर्मिति के बाद मराठी भाषिक राज्य का नाम 'बम्बई राज्य' 'बम्बई महाराष्ट्र राज्य', 'महाराष्ट्र' ऐसी विविध सूचनाएँ आयी थी । यशवंतरावजीने काँग्रेस व विरोधी पक्ष के सदस्यों को विश्वास में लेकर 'महाराष्ट्र राज्य' यह नाम निश्चित किया ।  विधान सभा में यह नाम एकमत से सहमत हुआ ।

सीमा प्रश्न पर मध्यस्थ

महाराष्ट्र और म्हैसूर सीमा प्रश्नों के संबंध में चर्चा करते समय यशवंतरावजी ने अपने मत निर्भयता से कह दिये । इस प्रश्न पर उपाय सुलझाने के लिए मध्यस्थ नियुक्त करने की सूचना उन्होंने स्वीकार की ।

महाराष्ट्र का कारोबार स्वच्छ और समयपर करने के लिए किसी भी बात से समझौता नहीं किया । प्रशासन में उन्होंने उत्साह का और विश्वास का वातावरण निर्माण किया ।  उसे व्यवहारी और मानवता का दृष्टिकोन प्राप्‍त कर दिया । मुख्यमंत्री काल में उनके कर्तृत्व की प्रतिमा ऊँचाई पर पहुँच गयी । प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरूजी ने जाहिर सभा में यशवंतरावजी का गौरव किया । जयप्रकाशजी नारायणने उन्हें सर्वोत्तम मुख्यमंत्री कहा । यशवंतरावजी महाराष्ट्र को पुरोगामी समृद्ध राज्य बनाने में व्यस्त थे ।  इस समय 'हिमालय' ने मदद के लिए 'सह्याद्री' को पुकारा और महाराष्ट्र का सह्याद्री हिमालय की मदद के लिए चला गया । विदर्भ में जुलाहों की सूत कताई की सहकारी मिल को नागपूर में शुरू करने के लिए यशवंतरावजीने ५० लाख रुपये खर्च की योजना को मान्यता दी ।

स्वातंत्र्य आंदोलन में योगदान

स्वातंत्र्य आंदोलन में यशवंतरावजी स्वयं कूद पडे । क्रांतिसिंह नानाजी पाटील, यशवंतरावजी चव्हाण, वसंतदादाजी पाटील, किसनवीरजी ये उस समय सातारा जिले में अग्रगण्य लोग थे । परंतु इन सब में यशवंतरावजी की बौद्धिक ऊँची सबसे ज्यादा थी ।  इसलिए यशवंतरावजी का नेतृत्व सतत विकसित होता रहा । अपयश यह शब्द यशवंतरावजी को कभी भी मालूम नहीं था । और राजनीति में सुसंस्कृत दृष्टि से वादविवाद न करते हुए, गालियाँ न देते हुए सुसंस्कृत दृष्टि से राजनीति की जा सकती है यह बात उन्होंने महाराष्ट्र को दिखायी । और देश में महाराष्ट्र की अलग, उच्च और अच्छी प्रतिमा निर्माण की । स्वातंत्र्यपूर्व काल में लोकमान्यजी तिलक के कारण महाराष्ट्र देशभर में जैसा परिचित था वैसे स्वातंत्र्योत्तर काल में लगभग तीस वर्ष यशवंतरावजी के कारण महाराष्ट्र भारत देश में परिचित हुआ । दिल्ली में उत्तर भारतीय लोग यशवंतरावजी को 'सह्याद्री का शेर' कहते थे । यशवंतरावजी उचित मनुष्य को चुनते थे ।  वे अच्छे मनुष्य को अपने पास रखते थे । वे उन्हें समर्थन देते थे । वे राजनीति में अधिक से अधिक सच्चाई से, ईमानदारी से काम करते थे । यशवंतरावजी ने निर्मल पद्धति से २५ वर्षोंतक राजकारोबार किया । संयुक्त महाराष्ट्र के आंदोलन में यशवंतरावजी ने महाराष्ट्र की अपेक्षा पं. नेहरूजी बडे हैं ऐसा विधान किया था । इसलिए उन्हें प्रचंड आलोचना सहन करनी पडी । उनके इस विधान के पीछे देशहित की भावना प्रधान थी ।  इसलिए लोकक्षोभ होने पर भी यशवंतरावजी ने अपना विधान पीछे नहीं लिया । देश के स्तरपर नेहरू की जैसे औद्योगिक विकास की नीति थी और विज्ञान को बढावा देने की भूमिका थी, नेहरूजी का जैसे साहित्य पर, संगीत पर, रसिकता पर प्रेम था वैसेही यशवंतरावजी का साहित्य, संगीत पर प्रेम था । वे साहित्यकारों और संगीतकारों में रममाण हो जाते थे ।