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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-५७

यशवंतरावजी के निर्णय और कार्यनीति

बीसवी शताब्दी में महाराष्ट्र में आधुनिक नेताओं में यशवंतराव चव्हाण का स्थान अग्रगण्य है । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद के साथ ही केंद्र सरकार में रक्षा, अर्थ, विदेश, गृहमंत्री पद से लेकर आंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य करते समय संसार में कूटनीतिज्ञ, राजनैतिक प्रज्ञावंत, अर्थशास्त्रज्ञ, राजनैतिक सत्ताधारी आदि में उनका व्यक्तिमत्त्व निखर उठा । द्विभाषिक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद के सूत्र उन्होंने अपनी उम्र के ४२ वे वर्ष में हाथ में लिए । इतनी तरुण उम्र में मुख्यमंत्री पद का बहुमान मिले हुए वे पहले मुख्यमंत्री थे । उनका मुख्यमंत्री पद का कार्यकाल खूब मशहूर हुआ ।

महाराष्ट्र में जनसामान्य के हित के लिए यशवंतरावजी ने १९५७ से १९६०-६२ के काल में जो निर्णय लिये, जनता का सहकार्य लिया, प्रशासन को गति दी उसके कारण महाराष्ट्र की सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक, खेती और शिक्षाविषयक सूरत-शक्ल पूरी तरह से बदल गयी । इसलिए महाराष्ट्र की देश में पुरोगामी और सभी क्षेत्रों में जागृत राज्य के रूप में भारत में प्रतिमा निर्माण हुई और वह आजतक स्थायी रूप से विद्यमान है ।

ग्रामपंचायत और उसके संघटनपर उन्होंने अपना ध्यान केंद्रित किया । ग्रामपंचायत यह जनतंत्र की नींव है । ये संस्थाएँ केवल देहातों का नागरी कारोबार चलानेवाली संस्थाएँ नही रहनी चाहिए । उनपर देहात में समाज जीवन के सर्वांगीण विकास की जिम्मेदारी है, ऐसी यशवंतरावजी की धारणा थी । देहात स्वावलंबी हो, जनतंत्र की स्थापना देहात में हो, इसलिए ग्रामपंचायत, सहकार संस्था और शाला इन्हीं के सहयोग से पुनरुज्जीवन करनेवाला ग्रामपंचायत का कानून उन्होंने बनाया । सत्ता का विकेंद्रीकरण कर के देहाती आदमी को राजनैतिक सबक सिखाने का प्रयत्‍न यशस्वी हुआ ।

पार्लमेंटरी सेक्रेटरी और विविध विभागों के मंत्री के रूप में उनका कार्य अच्छा हुआ ।  उस में से उनकी प्रशासकीय कुशलता और पुरोगामी विचारधारा का अनुभव आया । उस काल में यशवंतरावजी में होनेवाले गुण विशेष रूप से प्रकट हुए । उस समय राजनैतिक वातावरण तप्‍त था । संयुक्त महाराष्ट्र का आंदोलन जोरों पर था । १ नवंबर १९५६ को द्विभाषिक बम्बई राज्य अस्तित्व में आया । इस विशाल द्विभाषिक राज्य का काँटोभरा मुकुट यशवंतरावजीने स्वीकार किया । बम्बई राज्य भारत में सभी राज्यों में विस्तार से बडा था । परंतु ये बडे राज्य का करोबार उम्र से सब में छोटे मुख्यमंत्री होनेवाले यशवंतरावजी ने बडी सूझ-बूझ संभालकर सब पर अपना प्रभाव डाल दिया ।

लोगों का, लोगों के लिए और लोगों द्वारा चलाया गया यह राज्य है । लोगों के हित के लिए यशवंतरावजी ने अधिकारों का और काम का विकेंद्रीकरण करने का महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया । लोगों की दृष्टि से यह आवश्यक था । मामूली और दैनंदिन कामों के लिए लोगों को इस सिरे से उस सिरे तक राजधानी की ओर जाना न पडे, उनका काम जल्दी और बिना कष्ट से हो, इस उद्देश से उन्होंने राज्यों का छः विभागों में विभाजन किया । राजकोट, अहमदाबाद, बम्बई, पुणे, औरंगाबाद और नागपूर ये विभागों के मुख्य स्थान बनाये गये ।

छः विभाग में विभाजन करते समय सचिवालय के विभाग के काम में भी फेरबदल किया । नियोजन और विकास विभाग का काम देखने के लिए विकास आयुक्त की नियुक्ति की । नागपूर और औरंगाबाद में रेव्हेन्यु ट्रायब्युनल की बेंचेस शुरू की ।  नागपूर और राजकोट में हायकोर्ट के बेंचेस स्थापन करने का उन्होंने महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया । राज्य का आकार और बोझ ध्यान में लेकर सचिवालय में विभागों की और खातेप्रमुखों के कार्यालयों की २५ प्रतिशत वृद्धि करने की एक योजना भी उन्होंने बनायी ।  कारोबार सुलभ करने की दृष्टि से सरकार सभी विभाग और उनके कार्यालयों का एकत्रीकरण आवश्यक था । उसके लिए एक स्वतंत्र इमारत की आवश्यकता थी ।  मुख्यमंत्री पद के सूत्र हाथ में लेने के बाद केवल १२ दिनों में उन्होंने बम्बई में सचिवालय के भव्य छः मंजिले इमारत का शिलान्यास मोरारजीभाई के करकमलोंद्वारा किया और उसके तुरंत बाद काम का प्रारंभ किया ।