दलितों को न्याय
दलितों को न्याय मिलना चाहिए, उन्हें सामाजिक स्थान प्राप्त होना चाहिए इसलिए यशवंतरावजीने समझदारी से प्रयत्न किये । हरिजन-गिरिजन लोगों के काम की ओर अधिक ध्यान दिया । 'महार वतन' रद करके हरिजनों की लज्जित जीवन से मुक्तता की । डॉ. आंबेडकरजी की बहुत दिनों की माँग पूर्ण की । गिरिजनों के लडकों के लिए आश्रमशालाएँ शुरू की । उन्हें खेती उपजाऊ बनाने के लिए जंगल में जमीन की रिआयते दी । इतनाही नहीं, 'नहीं,' रे वर्ग के लोगों को आगे लाने का प्रयत्न किया । राज्य में नये नये उद्योग शुरू करने के लिए वे उद्योगपतियों से मिले और महाराष्ट्र में उद्योग शुरू करने के लिए प्रवृत्त किया । उन्होंने कानून से औद्योगिक वसाहत निर्माण की । जमीन, पानी, बिजली, शास्त्र आदि की सुविध उपलब्ध कर कारखाने खडे करने के लिए उत्तेजन दिया । खेती के साथ कारखानों में उत्पादन बढाना चाहिए, मजदूरी भी अधिकाधिक उपलब्ध होनी चाहिए इसलिए चव्हाणजीने ये सब जानकर प्रयत्न किये । महाराष्ट्र आज उद्योग क्षेत्र में आगे दिखाई देता है, जगह-जगह पर औद्योगिक वसाहते खडी हैं इसका बहुत श्रेय यशवंतरावजी को जाता है ।
बालासाहेबजी खेर और मोरारजी देसाई इन दो मुख्यमंत्रियों के साथ तुलना की जाय तो यशवंतरावजी चव्हाण की भूमिका वास्तववादी और पुरोगामी लगती है । मूलोद्योग, शिक्षा योजना, शराबबंदी का अवास्तव कार्यक्रम, कुटुंब नियोजन, सख्ती की अंग्रेजी शिक्षा, कला साहित्य आदि ललित कला के संबंध में प्रतिगामी, दुराग्रही भूमिका यशवंतरावजी चव्हाण नहीं ले सके । सभी प्रश्नों के संबंध में उनका मन खुला था । पुराने अनुभवों का और नये विचारों का स्वागत करने के लिए उनका मन हमेशा तत्पर और उत्सुक रहता था । सभी आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रश्नों के संबंध में उनके विचार प्रकट हुए है ।
सहकारी आंदोलन के समान शक्कर कारखाने के संबंध में यशवंतरावजी ने अलग निर्णय लिया और महाराष्ट्र में शक्कर कारखाने के विकास को अलग मोड दिया । १९५७-१९५८ में सांगली जिले में शक्कर कारखाना शुरू करने के लिए श्री. वसंतदादाजी पाटील ने अर्जी की थी । परंतु उस समय शक्कर कारखाने को मंजूरी देने की पद्धत तय की हुई थी । गन्ने की फसल कितनी है यह देखकर वह गन्ना कारखाने की जरूरत पूरी करेगा तो कारखाने को परवाना देने की पद्धत थी । यह निष्कर्ष यहाँ लगाया जाता तो यह कारखाना हो ही सकता । परंतु इस विभाग में गन्ने की फसल बढने की सुप्त शक्ति बडी थी । और उसके आधार पर शक्कर कारखाना उत्तम चलाने का पूर्ण संभव था । ऐसे समय तय की हुई लीक पर न जाते हुए अलग मार्ग से निर्णय लेने की आवश्यकता थी । इसलिए यशवंतरावजी ने वहाँ स्वतंत्र दृष्टि से निर्णय लिया । उन्होंने वहाँ पहले शक्कर कारखाने की मंजूरी दी थी उसके बाद वहाँ गन्ने की वृद्धि होने लगी । हमेशा का जो मार्ग था उसे दूर कर दिया । इसलिए वहाँ भारत में प्रथम श्रेणी का शक्कर कारखाना हो गया । आज इस शक्कर कारखाने से सैंकडों किसानों के जीवन में परिवर्तन आ गया है । इसका श्रेय वसंतदादाजी पाटील के अविश्रांत प्रयत्न को और नेतृत्व को देना पडेगा । इसके सभी कारण यशवंतरावजी के स्वतंत्र और सर्जनशील कारोबारविषयक निर्णय में खोजने पडेंगे ।