विशाल द्विभाषिक और संयुक्त महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री
२६ फरवरी १९६१ में रविवार का दिन । यशवंतरावजी अहमदाबाद के दौरे पर जाने के लिए निकल पडे थे । उसी समय तर्कतीर्थ लक्ष्मणशास्त्री जोशीजी ने उनसे पूछा - 'यशवंतरावजी, परसो मैंने दी हुई दो अंग्रेजी पुस्तके क्या अपने पढी है ?' यशवंतरावजी ने कहा कि, 'मुझे समय ही नहीं मिला । आजकल काम की व्याप्ति इतनी बढी है कि पुस्तके पढने के लिए समय ही नहीं मिलता । ऐसी ही परिस्थिति रहेगी तो मुझे लगता है कि छः वर्षों में मैं अज्ञानी बन जाऊँगा ।'
यशवंतरावजी की परिस्थिति ऐसी है कि लोग जब सोने देंगे तब सो जायेंगे, लोग जब भोजन करने देंगे तब भोजन करेंगे ।
म. गांधीजी की इच्छानुसार एक गरीब किसान का बेटा आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के पद पर आरूढ हुआ है ।
जो अपनी विद्यार्थी अवस्था में शाला की फीस भी भर नहीं सकता था, जिसके शरीर पर कोट और पैरों में जूते डालना भी असंभव था, जिसकी माता को कष्ट, मजदूरी करनी पडती थी ऐसी गरिबी की परिस्थिति बितानेवाला यह 'यशवंत' आगे महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री होगा ऐसा किसी के भी सपने में आया नहीं होगा । यशवंतरावजी ने १९३० के गांधीजी प्रणित असहकारिता के आंदोलन में भाग लिया । किसी की परवाह किये बिना गांधीजी के राजनीतिक आंदोलन में सामील होना अर्थात सभी संकटों को गले लगाना होगा - मतलब फकीरी से दोस्ताना करना था ।
गांधीजी की पुकार सुनकार यशवंतरावजी ने आगे पीछे नहीं देखा । उन्होंने अपने घर और जीवन की परवाह नहीं की । उन्होंने एक के पीछे एक आनेवाले संकटों का मुकाबला किया । १९३२ मे उन्हे अठारह महिनोंकी सजा भुगतनी पडी । उन्होने १९४१ में वकालत शुरू की । १९४२ के 'करेंगे या मरेंगे' की लडाई में वे कूद पडे । आगे वे भूमिगत हुए । बडे भाई की मौत हो गयी । नवविवाहि पत्नी को गिरफ्तार किया गया और वह आगे बहुत बीमार पडी । परंतु यशवंतरावजी इन दिनों में डगमगायें नहीं । ध्येय से उनका मन विचलित नहीं हुआ । इस समय उनकी वीर माताजी ने और सहनशील पत्नी ने बडा धैर्य दिखाया । यशवंतरावजी के बडप्पन का श्रेय इन दोनों को है ।
'मैं महात्मा हुआ इसका कारण मेरी कस्तुरबा' ये उद्गार निकलकर गांधीजी ने स्त्री जाति का बडा गौरव किया था । वैसाही प्रभाव वेणूताईजी के त्याग का यशवंतरावजी के मन पर है । वेणूताईजी के कमजोर तबीयत के बारे में किसीने प्रश्न पूछा तो यशवंतरावजी कहते है कि, 'उनकी तबीयत खराब होने के लिए मैं ही कारण हूँ ।' स्त्रियों के संबंध में उनकी दृष्टि हमेशा अत्यंत सहानुभूतिपूर्ण थी । उनका उपहास और असुविधा होती है ऐसा दिख पडनेपर उन्हें वह सहन नहीं होता । एक बार ऐसा प्रसंग आया । असेंब्ली हॉल में काम समाप्त कर वे बाहर ही जाने के लिए निकले तब उन्हें दिख पडा कि विधानसभा भवन की प्रेक्षकों की गॅलरी में कुछ महिलाएँ जगह के अभाव में खडी हैं । ये देखतेही वे बेचैन हो गये । उन्होंने तुरंत उनके बैठने की व्यवस्था की । जब वे महिलाएँ बैठी, तब उन्होंने कहा - 'हुआ मेरा काम, अब मैं चलता हूँ ।' इसलिए तो इतनी देर वे ठहरे थे ।
जवाहरलालजी कहते थे कि गांधीजी का संपूर्ण दृष्टिकोन किसानों का था । हिंदुस्तान के किसानों के अर्थात बहुजन समाज के जीवन से वे एकरूप हो गये थे । बहुजन समाज के विषय में उनका प्रेम इतना गहरा था कि 'ये लोग है इसलिए मेरा अस्तित्व है' ऐसे गांधीजी कहते थे । यशवंतरावजी का विशाल दृष्टिकोन वैसा ही था ।