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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-३१

१९४२ में कराड में दक्षिण महाराष्ट्र साहित्य संमेलन बडे उत्साह से संपन्न हुआ । कवि बालकृष्णजी, पुं. पा. गोखलेजी, पंडित सप्रेजी, शंकरराव करंबलेकरजी, कृष्णराव सरडेजी आदि साहित्यिक उपस्थित थे । कराड के संमेलन में यशवंतरावजी ने क्रियाशील होकर भाग लिया था । इस संमेलन में दो परिसंवाद आयोजित किये थे । श्री. कृ. पां. कुलकर्णीजी पहले परिसंवाद के अध्यक्ष थे । दुसरे परिसंवाद के अध्यक्ष थे यशवंतरावजी चव्हाण । उनका व्याख्यान का विषय था - 'बहुजन समाज और साहित्य' । दोनों परिसंवाद बडे सुंदर हुए । यशवंतरावजी का अध्यक्षीय समापन का भाषण व्यासंगपूर्ण था । यशवंतरावजी का यह भाषण श्री. कृ. पां. कुलकर्णीजी को बहुत पसंद आया ।  उन्होंने यशवंतरावजी को यह बताया भी । उसके बाद यशवंतरावजी कृ. पां. कुलकर्णीजी का आत्मचरित्र 'कृष्णाकाठची माती' पढ रहे थे । उन्होंने अपने आत्मचरित्र में यशवंतरावजी के परिसंवाद में किए भाषण का गौरवपूर्ण उल्लेख किया था ।

विश्वनाथ उर्फ तात्यासाहेब कोरेजी यह एक उत्कृष्ट सहयोगी कार्यकर्ता थे । उनका और यशवंतरावजी का जीवनभर संबंध रहा । १९४२ के आंदोलन में श्री. शांतारामजी इनामदार ने यशवंतरावजी को संपूर्ण सहयोग
दिया । अदालत का समय समाप्‍त होने पर दोनों में स्वातंत्र्य की चर्चा होती थी ।

७ अगस्त १९४२ को बम्बई में वालिया टँक पर अखिल भारतीय काँग्रेस कमिटी की ऐतिहासिक बैठक हुई । इस बैठक में पंडित जवाहरलालजी नेहरूने 'भारत छोडो' का प्रस्ताव रख दिया । सर्व सम्मति से प्रस्ताव पारित हुआ । उन्होंने प्रस्ताव का स्पष्टीकरण करते हुए कहा कि - 'हमारा यह प्रस्ताव किसी को धमकी नहीं है । यह हमारी शत्रुता की भावना नहीं ।'

भारत छोडो का अर्थ पूछने के लिए यशवंतरावजी गांधीजी के पास गये । गांधीजी ने इसका अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा - 'हम ब्रिटिशों को हिंदुस्थान से चले जाओ, ऐसा जो कहते हैं, इसका अर्थ अँग्रेज मनुष्य को तुरन्त हिंदुस्तान छोडना चाहिए, ऐसा नहीं है ।  फिर भी वे हिंदुस्तान में रह सकते है । मेरा कहना इतना ही है कि ब्रिटिश तुरंत अपनी सत्ता का त्याग करे । हिंदुस्तान में जो राज्यकर्ता अंग्रेज लोग है, वे हिंदुस्तान में मित्र के रूप मे रह सकते है ।

अधिवेशन समाप्‍त होने पर यशवंतरावजी वापस आ गये । फिर यशवंतरावजी वेणूताईजी को पत्र लिखकर संपूर्ण परिस्थिति की कल्पना दी । कहा कि -'मैं एक तूफान में प्रवेश कर रहा हूँ । मैंने क्षमा मांगी । उसे क्या लगा होगा यह मैंने पूछा नाहीं ।'

उधर रोड के पास थोडे अंतर पर मेरे स्नेही श्री. शंकररावजी बेलापुरे मेरी राह देखते हुए खडे थे । वे अच्छी तरह मोटर साइकिल चलाते थे । 'मैं आया हूँ' का इशारा करते ही वे मोटर साइकिल लेकर मेरे पास आ गये । उन्होंने मुझसे कहा - 'बैठो पीछे, चलेंगे हम ।' यहाँ से यशवंतरावजी की धुमक्कडी की शुरुआत थी ।

२४ अगस्त को कराड तहसीलपर मोर्चा लेने का निश्चय हुआ । इस मोर्चा का नेतृत्व कराड तहसील में काँग्रेस के प्रमुख बालासाहेब पाटील उंडालकरजी करेंगे । श्री. शांतारामजी बापू, कासेगावकरजी वैद्य, सदाशिवरावजी  पेंढारकर और युवक पीढी में नये लडकों की एक सेना कराड शहर में खडी रही । इसका नेतृत्व महादेवजी जाधव ने किया । बहुत भीड एकत्र हुई थी । कुछ लोग तहसील कचहरी के मैदान में तिरंगा झंडा लेकर गये । पुलिस ने उंडालकरजी को गिरफ्तार किया । इसके साथ अनेक लोगों को गिरफ्तार किया । किसी तरह का क्यो न हो, अपनी विजय हुई है इसी भावना से लोग अपने अपने गाँव गये । उन्हे कोई परवाह नहीं थी ।

१९४३ के जनवरी में यशवंतरावजी के दिन ऐसे ही चले जा रहे थे ।  शिरवडे स्टेशन के अग्निकांड के मुकदमे में प्रायः सभी लोग पकडे गये थे । श्री. सदाशिवजी पेंढारकर और उनके साथियों पर मुकदमे शुरू थे । इन अभियुक्तों में यशवंतरावजी का भांजा बाबूरावजी कोतवाल भी था । इन सभी को सजा हुई । इन सभी लोगों ने यंत्रणाएँ सहन की । वह भी यशवंतरावजी के लिये और अपनी राष्ट्रनिष्ठा के लिए । सजाएँ होने पर भी ये नहीं डरे थे । विशेषकर श्री. आत्मारामजी बापू जाधव, बाबूरावजी कोतवाल, बाबूरावजी काले मालदणकर को पुलिसों ने बहुत यंत्रणाएँ दी ।  उनकी कहानियाँ सुनकर यशवंतरावजी के शरीरपर रोंगटे खडे हो गये थे ।