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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-२७

वक्तृत्व स्पर्धा

यशवंतरावजी को तिलक हाइस्कूल में तिलकजी के संबंध में बहुत पढने को मिला ।  हाइस्कूल में एक अच्छी प्रथा थी कि तिलकजी के विचार और जीवन के संबंध में निबंध स्पर्धा और वक्तृत्व स्पर्धा हर वर्ष ली जाती थी । इन दोनों में भाग लेने की यशवंतरावजी की बडी उत्सुकता थी । इसलिए तिलकजी के संबंध में जो भी साहित्य था उन्होंने वह पढ डाला ।

तिलक हाइस्कूल की तरह पूना के नूतन मराठी विद्यालय में हर वर्ष वक्तृत्व स्पर्धाएँ होती थी । यशवंतरावजी को उस स्पर्धा में भाग लेने की तीव्र इच्छा थी । १९३१ में पूना में होनेवाली स्पर्धा में यशवंतरावजी ने भाग लिया । पूना आने-जाने का खर्च था ।  लेकिन श्री. शिवाजीराव बटाणे ने इस काम के लिए सहयोग दिया । वहाँ छात्र को ऐन वक्त पर विषय देकर दस मिनट बोलने के लिए कहा जाता था ।

यशवंतरावजी को 'ग्राम सुधारणा' यह विषय देकर बोलने के लिए कहा गया । उनका भाषण सुनकर परीक्षक खुश हुए दिखाई दिये । फिर उन्होंने बोलने के लिए यशवंतरावजी को दस मिनट दिये । भाषण होने के बाद सभी ने उनकी प्रशंसा की । उस स्पर्धा में उन्हें पारितोषिक मिला । १९३२ में यशवंतरावजी को सजा हुई । उस समय वह पारितोषिक भी जब्त हुआ - सरकार में जमा हुआ ।

यशवंतरावजी का अनेक व्यक्तियों से संपर्क

बचपन से लेकर अन्ततक यशवंतरावजी का अनेक व्यक्तियों से संपर्क आया । उनका संपर्क क्षेत्र बडा व्यापक है । उनका राजनैतिक, सामाजिक, शैक्षणिक, साहित्यिक व्यक्तियों से संपर्क आया । उन सबका विवेचन करना संभव नहीं है । इसलिए उनके संपर्क में आये प्रमुख व्यक्तियों का संक्षिप्‍त परिचय देना उचित है -

यशवंतरावजी के बडे भाई को नौकरी देने के लिए पिताजी के मित्र बेलीफ श्री. शिंगटेजी ने बहुत प्रयत्‍न किये । उनका नाम कभी भी भुलाया नहीं जा सकता । जिस अंग्रेज अधिकारीने भाई को नौकरी दी, उसकी मानवता अवर्णनीय है ।  यशवंतरावजी के ननिहाल के मकान के मित्र श्री. सखारामजी म्हस्के उनके हितचिंतक थे । भाऊसाहेब कलंबे गुरुजी सत्यशोधकीय विचारों के प्रचारक थे । १९२७ के आसपास भास्कररावजी जाधव बम्बई लेजिस्लेटिव्ह कौन्सिल के उम्मीदवार थे ।  यशवंतरावजी ने उनका प्रचार किया था । जाधवजी चुनकर आये थे । हरिभाऊजी लाड यशवंतरावजी के पुराने मित्र थे । वे छोटीसी दुकान चलाते थे ।  यशवंतरावजी वृत्तपत्र पढने के लिए वहाँ जाते थे । श्री. गणपतरावजी ऊर्फ भाऊसाहबजी बटाणे के द्वारा गणेशोत्सव मनाया जाता था । इस उत्सव को बडी प्रतिष्ठा थी । इस उत्सव के लिए बटाणेजी सभी तरह की मदद करते
थे ।

श्री. साहेबरावजी कडेपूरकर पहलवान थे और राष्ट्रीय आंदोलन में कार्य करते थे ।  यशवंतरावजी और उन में मित्रता हो गयी । सातारा जिले में यशवंतरावजी के सभी काम का समर्थन करनेवाला वह उनका सहकारी बन गया, यशवंतरावजी को हमेशा उनकी याद आती है । २६ जनवरी १९३० को स्वातंत्र्य दिन मनाने का निश्चय हुआ था । इधर कराड में भी झंडावंदन करने का निश्चय हुआ । झंडावंदन करने के समय यशवंतरावजी ने प्रतिज्ञापत्र तयार किया । हरिभाऊजी के नेतृत्व में यशवंतरावजी और उनके साथी कृष्णा नदी के किनारे पर पहुँचे । वहाँ झंडावंदन किया । स्वातंत्र्य के लिए प्रयत्‍न करना चाहिए ऐसी उन्होंने शपथ ली ।

२६ जनवरी की सुबह यशवंतरावजी कभी भी नहीं भूलेंगे । राष्ट्रीय काँग्रेस के तिरंगे झंडे के नीचे यशवंतरावजी ने प्रतिज्ञा वाचन किया । इसलिए उनके मन की शांति बढ गयी ।  उनका राजनैतिक जीवन सच्चे अर्थों में शुरू हुआ । ढेढ (हरिजन) समाज में यशवंतरावजी के एक मित्र थे । उनका नाम था उथलेजी । वे हमेशा यशवंतरावजी के साथ रहते थे । वे यशवंतरावजी जैसा बोलते थे वैसा ही करते थे । पर वे इस काम के लिए यशवंतरावजी को कभी भी उनके समाज में नहीं ले गये ।  यशवंतरावजी ने उनसे एक बार पूछा - 'ऐसा क्यों ?' उन्होंने उत्तर दिया, 'हमारे समाज का जो दुख है, वह तुम जैसा समझते हो, उसकी अपेक्षा अलग है ।  महात्मा गांधीजी, आंबेडकरजी को अपने साथ क्यों नहीं ले जाते, उन्होंने वह किया तो सब बदल जायेगा ।' लेकिन ये सब प्रश्न हमारी सीमा के बाहर के थे ।