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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-२२

शवंतरावजी का विवाह और दाम्पत्य जीवन

एल.एल.बी. होने के बाद विठाईने कहा कि - 'बाबा, विवाह कर ले ।' यशवंतरावजी ने कहा - 'हाँ, ठीक है । अच्छी लडकी देखने में आयी तो मैं जरूर विवाह करूँगा ।' फिर वह लडकी देखने के उद्योग में लग गयी । उसने वह काम गणपतराव पर सौंप दिया और कह दिया - 'और अब छोटे भाई की ओर ध्यान दे ।' यशवंतरावजी ने कुछ लडकियाँ देखी, पर उन्हें उन में बहुतसा आकर्षण दिख नहीं पडा ।  इसलिए उन्होंने उसे नजरअंदाज कर दिया । १ मार्च १९८५ को महाराष्ट्र शासन की जो 'लोकराज्य' की पुस्तिका प्रकाशित हुई थी, उस पुस्तिका के पेज क्र. २२ पर लिखा है कि यशवंतरावजी का विवाह १९४२ के मई महिने में फलटण में हुआ था । यह बात गलत है । मेरे पास यशवंतरावजी के विवाह की जो निमंत्रण पत्रिका है, उसके अनुसार यशवंतरावजी का विवाह वेणूजी के साथ २ जून १९४२ में कराड में हुआ है ।

उनके विवाह की निमंत्रण पत्रिका राष्ट्रीय भावों से परिपूर्ण हे । इसलिए उस पत्रिका का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है । विवाह पत्रिका इस प्रकार है -

लग्न पत्रिका (पत्रिका देखनके लिये क्लिक किजिये)

पत्रिका पर तिरंगा झण्डा छपा है । यह भारत का मानचिन्ह है । इससे यशवंतरावजी का राष्ट्र प्रेम प्रकट होता है । उनकी अपने देश भारत पर अटूट निष्ठा दिखाई देती है ।  उसके बाद लिखा है - 'कुर्यात सदा मंगलम' इसका अर्थ है - 'हमेशा के लिए मंगल हो ।'  यह निमंत्रण पत्रिका व्यापारी प्रेस कराड में छपी गयी थी ।

माँ की इच्छानुसार १९४२ में यशवंतरावजी विवाहबद्ध हो गए । फलटण के मोरे की कन्या वेणूजी यशवंतरावजी की सहचारिणी (पत्‍नी) बनकर उनके घर में आयी । देश के स्वातंत्र्य के लिए सतत काम करनेवाले यशवंतरावजी को घर-गृहस्थी की अपेक्षा देश के गृहस्थी की अधिक चिंता लगी थी । विवाह होनेपर भी यशवंतरावजी गृहस्थी बनने का प्रश्न निर्माण नही हुआ था । विठाईजी घर गृहस्थी देखती थी । विवाह के बाद पहली संक्रांत थी सौ. वेणूताईजी की । इसी दिन पुलिसने सौ. वेणूताईजी को गिरफ्तार किया और भूमिगत यशवंतरावजी की खोज लगाने का प्रयत्‍न किया । इधर गणपतरावजी को भी विसापूर जेल में रख दिया । उसके बाद कुछ दिनों में चव्हाण परिवार पर आपत्ति ढल गयी । उनके बडे भाई ज्ञानदेवजी की बीमारी में मृत्यु हुई । भूमिगत हुए यशवंतरावजी को पंद्रह दिनोंके बाद यह वार्ता समझ गयी । यशवंतरावजी को बहुत बडा दुःख हुआ ।  उन्हें माँ से मिलने की तीव्र इच्छा हुई । पर कोई इलाज नहीं था । ''भावना की अपेक्षा कर्तव्य श्रेष्ठ होता है ।'' यही विचार कार्यकर्ताओं ने यशवंतरावजी को समझाया ।  यशवंतरावजी अपने विचार के अनुसार माँ से मिलने के लिए चले जाते तो सरकार उन्हें पकडने में सफल हो जाती । आखिर यशवंतरावजी माँ से बिना मिले पूना में ही रह गये ।

इसी समय सातारा जिले में भूमिगत आंदोनल गनिमी साजिस की तरह सशस्त्र होने की तैयारी कर रहा था । इस आंदोलन को आगे पत्री सरकार ऐसा नाम मिला । इसी संक्रमण अवस्था में वे परिवार की समस्याओं से घिर गये थे । बडे भाई की मृत्यु के पूर्व सौ. वेणूताईजी की रिहाई हुई थी । उनकी बीमारी में वेणूताईजी उनके पास बैठी रही थी । वेणूताईजीने उनकी मृत्यु को नजदीक से देखा था । इसलिए वे मानसिक दृष्टि से त्रस्त हुई थी । यशवंतरावजी को यह समझने पर उनकी मानसिक अस्वस्थता बढ गयी ।  उस समय वे बम्बई में भूमिगत थे । वे बम्बई से पूना आये । उन्होंने वेणूताईजी को पूना बुलाकर डॉक्टर को दिखाया । वेणूताईजी की निश्चित बीमारी क्या है यह समझ में नहीं आया । उनकी तबीयत तो खराब हुई थी । वे चार-छः घंटोंमे बेहोश हो जाती थी ।  उनकी तबीयत की व्यवस्था हो इसलिए यशवंतरावजी ने वेणूताईजी को पीहर फलटण को भेज दिया । और इधर यशवंतरावजी की तबीयत खराब हो गयी । हवामान बदलने के लिए वे पूना के पास घोडनदी के स्थान पर रह गये । उसके बाद वे पूना आये । पूना आने पर उन्हें सातारा की परिस्थिति की जानकारी मिल गयी । शिरवडे स्टेशन जलानेवाले उनके सभी साथीदार पकडे गये । उसी मुकदमें सभी मुलजिमों को अभियुक्तों को सजा हुई । यशवंतरावजी ने पुणे शहर और जिले के ग्रामीण भाग में रहकर काम करना तय किया ।