मुख्यमंत्री ने झट जबाब दिया -
"तो क्या मुझे बाहर चलना ही पडेगा ?"
"जी हाँ" - युवक की वाणी कुछ गभ्भीर थी ।
मुख्यमंत्री ने कहा - "अच्छा भाई चलो, बाहर चलते है ।" यह कह कर वे पुन: बाहर आ गए और तरह तरह की बातें हँसते हुए करने लगे । गाडी तो चली गई, पण कुछ क्षण के लिए लोगों की जुबान पर श्री चव्हान के ही नाम की चर्चा चलती रही ।
मुख्यमंत्री और पत्रकारों के बीच मनोरंजक नोंकझोंक
मुख्यमंत्री के रूप में श्री चव्हान पिछले दिनों सेवाग्राम आए थे, तब वर्धा में उन्होने पत्रकारों को भी एक भेंट दी । अधिकारियो की मेहरबानी से कुछ सीमित पत्रकारो को ही उनके मिलने के लिए केवल १५ मिनिट का सम दिया गया, पर जिले के कई प्रमुख पत्रकारों की भी यह इच्छा रही कि वे मुख्यमंत्री से मिले और अपनेयहाँ की समस्याओ के बारे में चर्चा करें । फल यह निकला कि अधिकारियों ने कुछ ही पत्रकारो को उनसे मिलने के लिए अन्दर बुलाया और कुछ पत्रकार बाहर ही खडे रहे और इस फिराक में वे रहे कि मुख्यमंत्री के बाहर निकलने पर उनसे मिलेंगे । एक पत्रकार के नाते अधिकारियो ने मुझे भी उनसे मिलने की अनुमति दी । अधिकारियो द्वारा पंत्रकारो की उपेक्षा सहनीय नहीं थी । मुख्यमंत्री से परिचय होने के पश्चात् सर्वप्रथम मैने मुख्यमंत्री का ध्यान इस ओर दिलाया -
"श्री चव्हान साहब ! हमारे कुछ पत्रकार भाई आपसे मिलने के लिए बाहर बैठे है, अगर आपको कोई एतराज न हो तो उन्हें भी अन्दर बुला लिजिए।"
मुख्यमन्त्री ने तुरन्त जबाब दिया -
"हाँ, हाँ, उन्हे अवश्य ही बुलाइए । मैं उनसे अवश्य ही मिलूंगा । किसने उन लोगों को बाहर रोक रखा है ?"
फिर क्या था , सभी पत्रकार अन्दर आ गए । उन अधिकारियो की सूरत भी देखने योग्य थी, जिन्हो ने पत्रकारों को मुख्यमंत्री से मिलने से वंचित रखा था । पत्रकारों के चेहेरे पर प्रसन्नता की लहर दौड गई । पत्रकारों की यह एक शानदार विजय रही । थोडी देर बाद पत्रकारों और मुख्यमंत्री के बीच मनोरंजक नोंकझोक शुरू हुई ।
एक पत्रकार : विधान सभा सदस्यो के समान ही पत्रकारों को भी अपने अपने क्षेत्र में सरकारी बसों से यात्रा करने की सहूलियत शासन की और से देनी चाहिए ।