यूं महाराष्ट्र में शताब्दिको स हिन्दी की परम्परा चली आ रही है । महाराष्ट्र के संतोने, नामदेव,तुकाराम, रामदास आदि ने, हिन्दी में भजनों और भक्तिगीतो का निर्माण किया है । महाराष्ट्र में हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने में किंचित् मात्र विरोध भी नही हुआ है, बल्कि उसका हृदय से स्वागत किया गया है । लिपि की सहूलियत के कारण भी महाराष्ट्रीय लोगों को हिन्दी सीखने में कोई दिक्कत नहीं मालूम पडती और कई महाराष्ट्रीय लोगों ने हिन्दी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में काफी ठोस कार्य किया है । महाराष्ट्र सरकार का भी हिन्दी के प्रति अत्यन्त सहानुभूति का रूख है, और राष्ट्रभाषा के रूप में वह समूचे महाराष्ट्र राज्य में स्वीकृत हो चुकी है । महाराष्ट्र सरकार को हिन्दी भाषा और साहित्य की समृद्धि के लिए और भी ठोस कदम उठाने चाहिए । इस सम्बन्ध में हमने साहित्यकार संगम की ओर से एक डेप्युटेशन भी श्री यशवतरावजी चव्हान के सन्मुख उपस्थित किया था जिसमें उन्होने इस विचारधारा का तुरन्त स्वीकार कर लिया । एक बार हमें महाराष्ट्र राज्य के शिक्षा मन्त्री श्री बाळासाहब देसाई से भी इस विषय पर चर्चा करने क मौका मिला था और उन्हे भी ये विचार पसन्त आए थें । गरजे की महाराष्ट्र में हिन्दी के लिए सर्वथा अनुकूल वातावरण है जैसे जैसे इसका प्रत्यक्ष अनुभव अधिकाधिक प्रमाण में होता जाएगा वैसे वैसे कटुता और विद्वेष की भावना कम होती जाएगी । श्री यशवंतराव चव्हान, श्री बाळासाहेब देसाई आदि मित्रो को इतना जरूर देखना चाहिए कि उनकी हिन्दी के प्रति उदार नीति का व्यावहारिक अमल सचिवालय के लाल फीते में न अटक जाए ।
प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति को वैधानिक एवं शान्त उपायों से अपने मत का प्रचार करने का अधिका है, पर हिंसा, द्वेष और कटुता के लिए उसमें स्थान नहीं है । कटुता और विद्वेष का दुश्चक कभी कोई बडा कार्य नहीं कर पाता । उससे वातावरण विषात्क हो जाता है । फिर भी जो शासन में है उन्हे तो सहिष्णुता और संतुलन से ही काम लेना चाहिए ।
श्री यशवन्तराव चव्हान महाराष्ट्र राज्य को एक उदार, प्रगतिशील और आदर्श प्रजातान्त्रिक राज्य बनाना चाहते है । वे किसी भी बात के बारे में कट्टर दुराग्रही नही है । मुझे उनसे दो-चा बाल मिलने का मौका आया है और मेरा अनुभव है कि वे हमेशा नवीन विचारों और दृष्टिकोणों का स्वागत करते है, जो बात उनकी बुद्धि को पटती है उसे तुरन्त स्वीकार करते है, और नही पटती तो बडे सौजनय और विनय के साथ अस्वीकार कर देतें है । वे अपनी टीम के नेता जरूर है, पर अपने सहयोगियों के साथ उनका व्यवहार एक साथी जैसा रहता है । अकड या अहंकार की भावना, जो अक्सर पद-ग्रहण करनेवालों में दिखाई देती है, उनमें नहीं दृष्टिगोचर होती । किसी भी अच्छे कार्य के प्रति उनकी स्वाभाविक सहानुभूति होती है और मैत्री निमाने में भी वे बहुत दक्षचित्त रहते है ।