यशवंतरावजी चव्हाण व्यक्ति और कार्य -१९

सन उन्नीससों बयालीस

सन १९४२, भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन का महत्वपूर्ण काल था । दूसरा महायुद्ध कभी का प्रारंभ हो गया था । ब्रिटिश सत्ताने अपने स्वार्थ के लिए भारत को भी महायुद्ध के जाल में उलझा लिया था । फलतः देश की जनता और जननेता अत्यधिक नाराज थे । वे इस मौके पर आंशिक स्वराज्य की मांग कर रहे थे । लेकिन तत्कालीन ब्रिटिश प्रधान मंत्री सर विन्सटन चर्चीलने भारतीय जननेताओं की एक न सुनी और भारत के युद्ध में सम्मिलित होने की घोषणा कर दी । उस समय उद्‍भवित परिस्थिति पर आमूलाग्र विचार करने के लिए बम्बई में अखिल भारतीय काँग्रेस कार्य समिति की महत्त्वपूर्ण बैठक बुलाई गई थी । यह बैठक राष्ट्रपिता पूज्य बापू, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, गोविंद वल्लभ पंत, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी, भारत कोकिला सरोजिनी नायडु, डॉक्टर पट्टाभि सीतारामैया, जयप्रकाश नारायण आदि नेताओं की उपस्थिति में और काँग्रेसाध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में होनेवाली थी ।

सारे देशकी आँखें बम्बई में होनेवाली काँग्रेस कार्यसमिति की आपत्कालीन बैठक की ओर लगी हुई थी । यशवंतराव भी उक्त बैठक के समय बम्बई में उपस्थित थे । कार्यसमिति ने प्रदीर्घ चर्चा के पश्चात् पूज्य बापू के नेतृत्व में 'ब्रिटिशों भारत छोडो' (Quit India) का प्रस्ताव प्रसारित किया था । उस समय भाषण करते हुए पूज्य महात्मा गान्धीने भारतीय जनता को अपने उद्दिष्ट में सफलता प्राप्‍त करने हेतु 'करो या मरो' (do or die) का अमर संदेश दिया था । प्रस्ताव की कानोंकान खबर मिलते ही तत्कालीन भारत सरकार ने कार्यसमिति के सभी सदस्यों को उसी रात गिरफ्तार कर, अहमदनगर के किले में बंद करने के लिए चुपके से रवाना कर दिया था । दूसरे दिन जब यह खबर सारे देश में वर्तमानपत्रों के जरिये प्रसृत हुई तब तहलका मच गया । सारे देशमें सख्त हडताल पडी, बडे पैमाने पर सरकार विरोधी निदर्शन किये गये । सभाएँ हुईं । बडे-बडे जुलूस निकले । सरे आम ब्रिटिश सत्ता की खिल्ली उडाई गई और सरकार के चापलूसों का धिक्कार किया गया ।

बम्बई की खबर कराड भी वेगसे पहूँच गई । कसबे में सख्त हडताल पडी । शामको प्रचंड सभा हुई, जिसमें सरकार की कटु आलोचना की गई । सभा के बाद पच्चीस-तीस विद्यार्थियों की श्री हरिभाऊ लाड के घर पर अनौपचारिक सभा हुई । आगे क्या करना चाहिए, यही एक जटिल समस्या सभामें उपस्थित लोगों को सता रही थी । सामुदायिक सत्याग्रह, असहयोग आन्दोलन, पिकेटिंग और व्यक्तिगत सत्याग्रह की धुंधली सी कल्पना सभी के दिमाग में चक्कर काट रही थी । लेकिन उससे 'क्विट इन्डिया' की भावना कहाँ मूर्तिमंत हो रही थी ? गिरफ्तार हुए हमारे जननेताओं का आदेश था कि अब प्रत्येक भारतीय अपने आपको स्वतंत्र समझे और इसी भावना से प्रवृत्त हो, वह ब्रिटिश सत्ता को भारत से खदेड, बाहर करने के लिए कटिबद्ध हो जाय । लेकिन बम्बई बैठक की आँखों देखी परिस्थिति और आदेश जानने के लिए सभी उत्कंठित थे । यशवंतराव ९ आगस्ट को पहूँचेंगे - खबर से कराड निवासियों के उत्साह का पारावार न रहा । वे उनका स्वागत करने और नया आदेश पाने के लिए तत्पर बन गये । लेकिन पुलिस भी असावधान न थी । उसने यशवंतरावको स्टेशन पर गिरफ्तार करने की योजना तैयार की थी--फिर क्या 'न रहेगा बांस और न बजेगी बांसरी' अतः पहलेसे ही स्टेशन पर पुलिस का सख्त पहरा बैठ गया था । पुलिस-घेरे की बात सुन कर युवक-कार्यकर्ताओं के मना बैठ गये । पूना से आनेवाली प्रत्येक गाडी के प्रवासियों की कार्यकर्तागण उत्सुकता से टोह लेते और यशवंतराव को उनमें न पा कर राहत की साँस लेते रहते थे । मेल आई और गई । दूसरी कितनी ही गाडियाँ आई पर यशवंतराव उसमें भी न थे । पुलिस की सख्त निराशा हुई । हाँला कि कार्यकर्ताओंके निराशा का भी पारावार न था । फिर भी खुशी इस बात की थी कि अच्छा हुआ न आये, वर्ना मार्गदर्शन करने के पहले ही पुलिस गिरफ्तार कर लेती और सींकचों के पीछे अनिश्चित काल के लिए धकेल देती ।