सहकार
महाराष्ट्र में अल्पभूधारक किसानों की संख्या अधिक हैं । उस में भी सूखी खेती का क्षेत्र अधिक । ऐसी अवस्था में किसानों की दैन्यावस्था समाप्त कैसी करनी चाहिए इसका विचार करते हुए यशवंतरावजी ने किसानों की खेती को जोड व्यवसाय अथवा उद्योग की जोड दिये बगैर पर्यायी व्यवस्था निर्माण नहीं हो सकेगी, यह बात अपने साथियों के गले उतार दी । कपास की पैदास करनेवाले किसानों को सूत मिल की जोड, दलहन की पैदास करनेवाले किसानोंको सूत-मिलकी जोड, गन्ने की पैदास करनेवाले किसानों को शक्कर कारखानों की जोड मिलनेपर किसानों की फसल को निश्चित रूप से बाजारपेठ उपलब्ध होगी, उन्हें पैसे मिल जायेंगे, उसकी खेती के साथ उद्योग धंदों की समृद्धि भी होगी ऐसा उनका विश्वास था । परंतु यह उद्योगधंदा सहकारी तत्त्वों पर चलाना चाहिए । सहकार की भावना बढनी चाहिए ऐसा उनका आग्रह था । इसके लिए उन्होंने समय समय पर अर्थतज्ज्ञ, सहकार के पुरस्कर्ता लोगों से विचारविनिमय किया । सहकार से ही किसान कारखानों का और मिल का मालिक होता है । इससे इस किसान के साथ उस विभाग की आर्थिक स्थिति सुधार के लिए मदद होती है । खेती से संलग्न सहकारी कारखानदारी से एक नयी औद्योगिक समाजरचना अस्तित्व में आ सकती है ऐसा उनका विश्वास था ।
किसान की गर्दन को कसा जानेवाला सहुकारी पाश या फंदा दूर होना चाहिए । इसलिए उसे जरूरत के समय अर्थसाह्य मिलना चाहिए । इस हेतू से महाराष्ट्र में सहकारी आंदोलन मजबूत करने के लिए कृषी औद्योगिक अर्थव्यवस्था का आधार इस आंदोलन से मिलना चाहिए यह उनकी नीति थी ।
यशवंतरावजी ने सोच समझकर सहकारी आंदोलन को नयी उर्जित-अवस्था दी । राजनीति में सक्रिय होनेवाले नेता और कार्यकर्ताओं को सहकारी आंदोलन यह एक महत्त्व का माध्यम प्राप्त हुआ । परिणामतः सहकारी शक्कर कारखानों की संख्या महाराष्ट्र में बढती गयी । इसके साथ ही ग्रामीण विभाग में अन्य अनेक सहकारी संस्थाएँ स्थापन की गयी । खाद, बीज, विपणन संस्था आदि अनेक संस्थाएँ स्थापित हो गयी । इन सहकारी संस्थाओं के सामने विविध समस्याएँ थी । जैसे अपर्याप्त अर्थसाह्य, नौकरशाही की मनमानी, अत्यल्प लाभ और अन्य समस्याएँ यशवंतरावजी ने सुलझाने का प्रयत्न किया । आगे जो सहकारी शक्कर कारखानों का जाल संपूर्ण महाराष्ट्र राज्य में फैला था इन सहकारी संस्थाओं की नींव यशवंतरावजी ने अपनी दूरदृष्टि से डाली थी, यह बात कोई भी स्वीकार करेगा । शक्कर कारखानों के परिसर में सहकारी सूत मिल, सहकारी कुक्कुट पालन संस्था, दूध उत्पादक संस्था, खेती के माल पर प्रक्रिया करनेवाली अन्य सहकारी संस्था, खरेदी-बिक्री संघ ऐसे अनेक उद्योग खडे रहे । उस में से ही आगे सहकारी पतपेढियों का और बँको का प्रस्थ बढता गया । इस सहकारी आंदोलन से ग्रामीण भागों का परिवर्तन हुआ । उससे ही आगे सर्वांगीण विकास को गति मिली । उसके साथ ही शैक्षणिक सुविधा, स्वास्थ्य सुविधा, यातायात परिवहन अनेक बातों मे प्रगति हो गयी । सहकारी संस्थाओं को यशवंतरावजी ने ठोस स्वरूप का योगदान दिया । राज्य की ओर से सहकारी संस्थाओं को पूँजी और अनुदान के स्वरूप में बहुत अर्थसाह्य उन्होंने किया । उन संस्थाओं के आर्थिक व्यवहार सरकारी नियंत्रण में लाये गये । किसानों को पतपूर्ति करनेवाली संस्थाएँ सभी स्तर पर निर्माण की गयी ।