अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार
यशवंतरावजी चव्हाण
लेखक : प्रा. डॉ. के. जी. कदम
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युगीन परिवेश और यशवंतराव चव्हाण
युगीन परिवेश से हमारा तात्पर्य तत्कालीन वातावरण अर्थात उन राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों से है, जो नेता के जन्म के समय, शैशवकाल, किशोरावस्था, यौवनावस्था और यौवनोत्तर काल में विद्यमान थी । कोई भी नेता अपने परिवेश से नितांत कटकर, अस्पृश्य रहकर, अप्रभावित रहकर अपने नेतृत्व के उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में समर्थ नहीं हो सकता । नेता शून्य में कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि किसी भी नेता का नेतृत्व और कार्य अपने काल का दर्पण होता है । अतः युगीन परिवेश को अलग अलग रखकर किसी भी नेता के कार्य का मूल्यांकन संभव नहीं होता ।
राजनैतिक परिस्थिति
इ.स.१८८५ में राष्ट्रीय महासभा की स्थापना के बाद राष्ट्रीय एकता तथा बौद्धिक, नैतिक, आर्थिक, व्यावसायिक संगठन एवं विकास का सुयोग देश को प्राप्त हुआ । अब 'विविधता में एकता' राष्ट्रवादियों का मूलमंत्र हो गया था । राष्ट्रीय नेता गण नवीन करों, सैनिक व्यय वृद्धि, शासन की अनुदार और स्वार्थपूर्ण नीति से असंतुष्ट थे, किन्तु उन्होंने किस प्रकार का प्रत्यक्ष विरोध प्रकट नहीं किया था । निश्चय की कतिपय प्रस्ताव कृषकों की दयनीय अवस्था के सुधार के लिए प्रस्तुत किए गए । फिर भी प्रमुख माँगों का स्वरूप शिक्षित उच्च मध्यमवगीय स्वार्थों के अनुकूल था । डॉ. गुरुमुख निहाल सिंह के मत से इ.स. १८८५-१९०७ के युग में इंडियन नेशनल काँग्रेस ने भारतवासियों में राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न करने, उन्हें एक सूत्र में बाँधने और राष्ट्रीय एवं राजनैतिक जागृति फैलाने के लिए महत्त्वपूर्ण मौलिक कार्य किया था । डॉ. सीतारामैय्या का भी यही विचार है ।
इ.स. १८९७ में सुरेन्द्रनाथजी बैनर्जीने 'स्वराज्य' अथवा 'स्वशासन' का अस्पष्ट चित्र हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया । साथ ही लोकमान्य तिलकजी के रूप में राष्ट्रीयता मूर्तिमान हो उठी । लोकमान्य तिलक भारतीय जीवनदर्शन, आध्यात्मिकता और राजनीति की ठोस आधार भूमि पर राष्ट्र का निर्माण करना चाहते थे । इ.स. १९०३ में एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक के समय जनता का असंतोष फूट पडा । इ.स. १९०५ में बंग-भंग हुआ । इस बंग-भंग के विरुद्ध व्यापक आंदोलन हुए । पं. जवाहरलाल नेहरूजी के मत से १८५७ के विद्रोह के बाद पहली बार भारत लडने की क्षमता दिखा रहा था । विदेशी राज्य के सम्मुख पालतु पशु की तरह पराजित होकर दब नहीं रहा था । लॉर्ड मॅकडोनिल के मत से बंग-भंग अंग्रेजों की बडी भूल थी । इ.स. १९०५ में पहली बार रूस पर जापान को सामरिक विजय के फलस्वरूप भारत में चेतना, इ.स. १९०६ में मुस्लिम लीग का जन्म, इ.स. १९०७ में हरिवंशराय बच्चन का जन्म तथा इ.स. १९०८ में क्रांतिकारी पत्रों पर प्रतिबंध आदि घटनाएँ प्रमुख हैं । बारह वर्षीय बच्चन ने जालियाँवाला कांड की घटना देखी थी, जो उसे अभी तक याद है ।