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अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-६७

स्फोटक वातावरण में जनतंत्र की रक्षा

राज्य पुनर्रचना के बाद नवंबर १९५६ में नामदार चव्हाणजी बम्बई राज्य के मुख्यमंत्री हुए । इस नये राज्य में उस समय का वातावरण संतप्‍त और प्रक्षोभक था । लोगों को अन्याय के, अपमान के शब्द चुभते थे । जनसामान्य ही क्या, जनवेत्ता भी विवेक की अपेक्षा भावनावश हो गये थे । सार्वत्रिक चुनाव में काँग्रेस को महाराष्ट्र में अनपेक्षित बहुत बडा अपयश आया था । महाराष्ट्रीय काँग्रेस पक्ष में भी अंतर्गत अग्नि सुलग रही थी ।  अन्य राज्यों में अच्छा-बुरा, सत्यासत्य, समझ-गैरसमझ फैले थे । ऐसे चमत्कारिक वातावरण में ना. यशवंतरावजी ने नये बम्बई राज्य का नेतृत्व स्वीकार कर लिया था ।  तब यशवंतरावजी के सच्चे सुहृद और हितचिंतक भी उस यश के संबंध में साशंक थे ।

ऐसे स्फोटक वातावरण में धीरोदात्त वृत्ति से, शांति से, पर निश्चय से यशवंतरावजी ने मार्ग निकाला । काले झंडों का और जूतों का संचलन और अभद्र, अशिष्ट असंस्कृत अपप्रचार होते हुए भी शांति से, आत्मविश्वास से परिस्थिति का मुकाबला किया और वह परिस्थिति उन्होंने अपने नियंत्रण में कर ली । विपक्षी नेताओं ने भी उनके संबंध में गौरवोद्‍गार निकाले । पिछले छब्बीस महिनों में उन्होंने जनतंत्र कारोबार की और प्रथा की नींव डाली । जनतंत्र यह एक जीवन-निष्ठा है । व्यक्ति और व्यक्त समुद्र के हृदय में उसकी प्रतिष्ठापना करके इस देश में उसकी विचारपूर्वक रक्षा करनी चाहिए, इसकी प्रतीति रखकर उनका कारोबार चला है ।

यशवंतरावजी संसदीय जनतंत्र के तत्त्वों का प्रत्यक्ष आचार-विचार करते थे । जनतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को, उसके मत को, फिर वह व्यक्ति गरीब हो, धनवान हो, छोटी-बडी हो, स्वपक्षीय हो या विपक्षीय हो उसे कीमत है । वे इस बात को अच्छी तरह जानते थे ।  वे उसके अनुसार कार्य कर रहे थे ।

विपक्षी लोग भी जनता के प्रतिनिधि है, यह बात वे जानते थे । इसलिए चव्हाणजी लेन-देन की तैयारी से विपक्ष के नेताओं के साथ विचार-विनिमय करते थे और उन्हें अपने विश्वास में लेते थे । इस प्रकार उनके जनतंत्रनिष्ठ बर्ताव से विपक्ष नेताओं के विरोध की तीव्रता कम हुई । आखिर विपक्ष के नेताओं को उनके नेतृत्व का सम्मान करना पडा । इतने उच्च पद पर रहते हुए भी स्वपक्ष के कार्यकर्ताओं के साथही यशवंतरावजी विपक्ष के सामान्य कार्यकर्ताओं को यथासंभव मदद करने के लिए हमेशा तैयार और दक्ष रहते थे ।

अहमदाबाद में हुए गोलीकांड की जाँच के लिए उन्होंने कमिशन नियुक्त किया । इससे उनकी जनतंत्र निष्ठा व्यक्त होती है ।