भारतीय राजनीति मे यशवंतरावजी का प्रवेश
पहला चुनाव
१९३७ साल का चुनाव और १९४६ साल का चुनाव इन दोनों चुनावों में बहुत फर्क है । एक बडा जन-आंदोलन समाप्त हुआ था । द्वितीय महायुद्ध भी समाप्त हुआ था । इस समय उम्मीदवार का चुनाव उच्च स्तर से और सभी के सलाहमशविरे से होना चाहिए । यशवंतरावजी के अनेक साथीदार भूमिगत हैं और कुछ जेल में हैं । ऐसी परिस्थिति में इसे उम्मीदवारी दो और इसे उम्मीदवारी मत दो, ऐसी चर्चा में कम से कम वे तो भाग नहीं लेंगे और मैं उम्मीदवार हूँ ऐसी बात कहने के लिए यशवंतरावजी किसी से कहने के लिए नहीं जायेंगे ।
चुनाव नजदीक आये थे । इसलिए उम्मीदवारों की चर्चा शुरू होना स्वाभाविक था । स्वामी रामानंद भारती के मत से सभी कार्यकर्ताओं को इकठ्ठे करके सलाह लेनी चाहिए । भारती के अध्यक्षता में वालवे तहसील में एक गाँव में बडी सभा हुई और बहुत चर्चा हुई, ऐसी बात यशवंतरावजी ने सुनी थी । यशवंतरावजी उस सभा में नहीं गये थे । अधीर होकर इस सभा में उपस्थित नहीं रहना चाहिए, ऐसा कुछ विचार यशवंतरावजी के मन में घर कर गया था । और दूसरी बात यह है कि गणपतरावजी को बीमारी की अवस्था में रखकर चुनाव की राजनीति में भाग लेना, यह कल्पना यशवंतरावजी को अच्छी नहीं लगती थी । उस सभा में उलट-सुलट, नरम-गरम चर्चाएँ हुई । अन्त में उम्मीदवार के नाम के संबंध में कार्यकर्ताओंने मतदान किया । तब यशवंतरावजी मिरज में थे । सभा में उपस्थित कार्यकर्ता यशवंतरावजी से मिलने के लिए शाम के समय मिरज आये । उन्होंने कहा कि - 'सबसे अधिक मत तुम्हारे नाम को मिले हैं । अब तुम आगे पैर रखो और चुनाव की तैयारी में लग जाओं ।' यशवंतरावजी को यही सलाह देने के लिये ये कार्यकर्ता मिरज आये थे । यशवंतरावजी की 'हाँ' या 'ना' चर्चा में गणपतरावजी ने मध्यस्थता की और उन्होंने कहा -
'यदी मेरी बीमारी के लिए तू यह चुनाव नहीं लडेगा तो इस अस्पताल में मैं एक क्षणभर भी नहीं रहूँगा । जीवन में कुछ अवसर अपने आप चलकर आते हैं तब उनका इन्कार नहीं करना चाहिए । उनके सामने जाना चाहिए । ऐसे अवसर फिर आयेंगे, इसका यकीन नहीं होता । दुराग्रह छोड दे ।'
गणपतरावजी का शब्द यशवंतरावजीने स्वीकार किया और उसके बाद उम्मीदवार होने की दृष्टि से यशवंतरावजी काम में लग गये । यशवंतरावजी के सभी मित्रों को आनंद हुआ । जिले के प्रमुख नेताओं ने यशवंतरावजी से पूछा कि अन्य कौन उम्मीदवार होने चाहिए । यशवंतरावजी के मत से वालवे तहसील की ओर से श्री. के. डी. पाटीलजी को उम्मीदवार के रूप से चुनना चाहिए । उनके नाम को स्वातंत्र्यसैनिकों का समर्थन था । जिला काँग्रेस के पुराने अध्यक्ष श्री. व्यंकटराव पवारजी ये भी एक उम्मीदवार होने चाहिए । सातारा जिले के दक्षिण भाग के लिए यशवंतरावजी के नाम के साथ चार नाम स्वीकृत हुए ।
पिछले लगभग ४० वर्ष से यशवंतरावजी चुनाव की राजनीति करते हैं । लेकिन इतनी सरल, बिनाखर्च की, तत्त्वनिष्ठ जनता के स्वयंस्फूर्त समर्थन पर आधारित ऐसा कौनसा चुनाव होगा, तो १९४६ का चुनाव है । यह उन्हें स्वीकार करना चाहिए ।