• 001_Krishnakath.jpg
  • 002_Vividhangi-Vyaktimatva-1.jpg
  • 003_Shabdhanche.jpg
  • 004_Mazya-Rajkiya-Athwani.jpg
  • 005_Saheb_14.jpg
  • 006_Yashodhan_76.jpg
  • 007_Yashodharshan.jpg
  • 008_Yashwant-Chintanik.jpg
  • 009_Kartrutva.jpg
  • 010_Maulik-Vichar.jpg
  • 011_YCHAVAN-N-D-MAHANOR.jpg
  • 012_Sahyadricheware.jpg
  • 013_Runanubandh.jpg
  • 014_Bhumika.jpg
  • 016_YCHAVAN-SAHITYA-SUCHI.jpg
  • 017_Maharashtratil-Dushkal.jpg
  • Debacle-to-Revival-1.jpg
  • INDIA's-FOREIGN-POLICY.jpg
  • ORAL-HISTORY-TRANSCRIPT.jpg
  • sing_3.jpg

अधुनिक महाराष्ट्र के शिल्पकार-२९

श्री. विठ्ठलरावजी पागे, स्वामी रामानंद भारतीजी, भाऊसाहेब सोमणजी, श्री. वसंतदादाजी पाटील, गौरीहरजी सिंहासने और व्यंकटरावजी पवार ऐसे अनेक लोगों ने वैयक्तिक सत्याग्रह में भाग लिया । ये सब यशवंतरावजी के स्नेही थे । श्री. व्यंकटरावजी पवार ये जिला काँग्रेस के अध्यक्ष थे । वे जेल में गये थे । उनके बाद यशवंतरावजी जिला काँग्रेस के अध्यक्ष बन गये ।

एक बार हेडगेवारजी व्याख्यान देने के लिए कराड आये थे । उनके विचार सुनकर यशवंतरावजी को लगा कि इन लोगों को एक विशिष्ट वर्ग के लोगों की संघटना बनानी है । तब से वे उन से दूर रहने लगे ।

सत्याग्रह के दिन वालचंद गांधीजी ने रविवार चौक में सभा की व्यवस्था कर रखी थी ।  उस सभा में यशवंतरावजी ने भाषण दिया । पर उनके भाषण में कोई आक्षेपार्ह नहीं था । इसलिए उन्हें गिरफ्तार नहीं किया । उनके मित्र वालचंदजी उठे और उन्होंने युद्धविरोधी घोषणाएँ दी । इसके बाद तुरंत पुलिस आयी और उन्होंने वालचंद शेठजी को गिरफ्तार किया ।

१९३७ में जिला लोकल बोर्ड का चुनाव हुआ । उस चुनाव में धुलाप्पा आण्णा नवलेजी, सखाराम बाजी रेठरेकरजी और गौरीहर सिंहासनेजी ये यशवंतरावजी के मित्र चुनाव जीत गये थे । यशवंतरावजी इन सदस्यों के सलाहकार बने । इन सबने बाबासाहेब शिंदेजी को जिला लोकल बोर्ड का अध्यक्ष बनाने की बात तय की और वे अध्यक्ष बन गये । तबसे शिंदेजी का यशवंतरावजी से संबंध आया और धीरे धीरे यह संबंध बढ गया । उस संबंध का रूपान्तर प्रगाढ स्नेह में हुआ ।

इससे पहले कूपरजी सातारा जिले के सर्वाधिकारी थे । पर चुनाव में हार जाने पर उनकी सत्ता समाप्‍त हुई ।

१९४१ में जो चुनाव हुआ उस समय कूपरजी के सहयोगी आण्णासाहेब कल्याणीजी और सरदार पाटणकरजी ये दोनों भी कूपरजी से अलग हुए । फिर अध्यक्षपद के लिए दो उम्मीदवार सामने आये । एक आनंदरावजी चव्हाण और दूसरे बालासाहेब देसाईजी । इन दोनों में से आनंदरावजी चव्हाण यशवंतरावजी के विद्यार्थी अवस्था से मित्र थे ।  आनंदरावजी और यशवंतरावजी इन दोनों ने इंटर और बी.ए. की परीक्षा के समय एकत्र अभ्यास किया था । आनंदरावजी और बालासाहेबजी दोनों का तहसील एक ही था ।  दोनों की शिक्षा कोल्हापूर में हुई थी । उनके रिश्ते कोल्हापूर परिवार से थे ।

फिर अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ । हमारे काँग्रेस कार्यकर्ताओं ने बालासाहेब देसाईजी को सहयोग किया । वे चुनाव जीत गये । बालासाहबजी को यह बात महसूस हुई । इसी कारण आगे दोनों का सहयोग बढता गया और सातारा जिले में उनका और यशवंतरावजी का एक गुट माना जाने लगा । इस प्रसंग में यशवंतरावजी ने आनंदरावजी चव्हाण को दुख दिया, इस बात का यशवंतरावजी को भी बडा दुख हुआ ।

बालासाहेबजी और आनंदरावजी दोनों भी महत्त्व के आदमी थे । भविष्यकालीन राजनीतिमें दोनों की भी आवश्यकता थी । जो होना था, वह हो गया । सत्ता की राजनीति में कभी कभी ऐसा होता है । उधर सातारा जिले में सभी प्रमुख कार्यकर्ता जेल में थे और ऐसी हालत में यशवंतरावजी ने स्थानिक संस्था अपने कब्जे में ली थी ।  इसलिए किसनवीरजी, के. डी. पाटीलजी और यशवंतरावजी ने यह जो कार्य किया था वह प्रशंसनीय था ।

१९४१ साल के जिला बोर्ड के चुनाव में जो कुछ नये मनुष्य यशवंतरावजी के निकट के साथी बने उस में से यशवंतरावजी का श्री. यशवंतरावजी पार्लेकरजी के साथ घनिष्ठ प्रेम हुआ था । १९४१ में यशवंतरावजी पार्लेकर और ये दोनों मित्र हो गये । आगे यशवंतरावजी को सभी कार्यो में उन्होंने सहायता की ।

हरिभाऊजी जेल से बाहर आने पर यशवंतरावजी उनके साथी हुए । इस समय यशवंतरावजी के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण घटना घटी थी । इन सब चर्चाओं और आंदोलनों के बारे में चर्चाएँ चल रही थी । ये सब समझने के लिए यशवंतरावजी मग्न हुए थे । लेकिन उनकी माँ ने यशवंतरावजी को विवाह करने के लिए आग्रह किया ।

उन्होंने बार बार आग्रह किया । विवाह प्रसंग में माँ की विजय हुई और मैं विवाह के लिए तैयार हुआ । फलटणनिवासी स्व. रघुनाथ मोरेजी की कन्या वेणूताई के स्थल का पैगाम यशवंतरावजी के लिए आया था ।