अमृतसर काँग्रेसने देशकी तेजीसे बिगडती हुई परिस्थिति को ध्यानमें लेकर संस्था को भाषाई राज्यरचना का सर्वस्वी परित्याग कर बहुभाषी राज्यरचना के प्रश्न को कार्यान्वित करना चाहिए - ऐसा एक प्रस्ताव द्वारा निर्णय किया । हमारी सिमाओंपर शत्रु सेना की जमावट हो रही थी । भारतीय जनतंत्र का भविष्य अंधकारमय प्रतीत हो रहा था । सीमावर्ती प्रदेश पंजाब में साम्प्रदायिक दल अकाली पार्टी पंजाबी सूबा की रट अलग लगाये हुए थी । ऐसे प्रसंग पर राष्ट्रीय ऐक्य होना देश की आजादी को बनाये रखने के लिए काफी जरूरी था । इस आवश्यकता को अमृतसर काँग्रेस में उपस्थित राष्ट्र के विभिन्न भागों से आये जिन काँग्रेस-कार्यकर्ताओं ने बुरी तरह से महसूस किया, उनमें यशवंतराव भी एक थे । परिणाम स्वरूप अमृतसर काँग्रेस के पश्चात् यशवंतराव ने अपनी नीति को सार्वजनिक रूप से रखने का दृढ निश्चय किया । तदनुसार उन्होंने महाराष्ट्र को छोडकर दूसरे प्रदेश की सांगली में सर्व प्रथम 'अमृतसर काँग्रेस का संदेश' देते हुए बीस पच्चीस हजार की विशाल मैदिनी में बताया कि अगर किसी भी दलको बम्बई प्राप्त करनी हों तो जनता को महाराष्ट्र विषयक अपनी यथोचित माँग के बारेमें रही दलीलें उतारनी होंगी । उन्हें विश्वास दिलाना होगा कि हमारी माँग नीरि बकवास नहीं अपितु उसमें कुछ तथ्य है । ऐसे प्रसंग पर जो प्रयत्न कर रहे हैं - उन्हें यह कहना कि तुम लोग लौट आओ - वहाँ तुम्हारी अब जरूरत नहीं है । घरेलु समस्याएँ हल नहीं होतीं इसका अर्थ यह तो नहीं है कि घर को ही छोड दें ? लोग मुझ पर अत्यधिक चिढे हुए हैं । लेकिन मेरी बात सुनने में तो कोई हर्ज नहीं । पसन्द न आएँ तो एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल दो । समितिवाले मुझे महाराष्ट्र का सूर्याजी पिसाल कह कर बदनाम करते हैं । लेकिन क्या उनके कहने से संयुक्त महाराष्ट्र का उद्दिष्ट सिद्ध हो जायगा ? अगर मैं सूर्याजी पिसाल हूँ तो फिर इस प्रश्नमें शिवाजी कौन है और औरंगजेब कौन ? क्या काले ध्वज ले कर भोली-भाली जनता को उभाड कर होली का नारियल बनानेवाले और अवसर आने पर रणमैदानसे पीठ दिखा कर भागने वाले शिवाजी हैं ? संभव है कि इनके कुप्रचार से मैं बदनाम हो जाऊँगा पर सत्य भी कभी बदनाम हुआ है ? एक समय ऐसा जरूर आएगा जब मुझे बदनाम करनेवाले ही आकर कहेंगे कि हमारा प्रचार गलत था । बम्बई सह संयुक्त महाराष्ट्र नहीं हो रहा है अतः प्रत्येक मराठी भाषी जितना दुःखी है उतना मैं भी दुःखी हूँ । लेकिन विरोधियों की चाह बम्बई को प्राप्त करने से अधिक काँग्रेस को मटियामेट करने की है । ताकि फिर पाँचों अंगुलियाँ घी में और सिर कढाई में ! जबकि काँग्रेस कभी किसी दल की विरोधी नहीं रही । हम तो चाहते हैं कि जनतंत्र प्रणाली में विभिन्न विचार-धाराओं का प्रतिनिधित्व करनेवाले अलग अलग दल होने ही चाहिए । शासन-सत्ता किसी भी दल के हाथ में क्यों न हो हम तो स्वस्थ प्रजातंत्र प्रणाली के पूजारी हैं । समिति छत्रपति शिवाजी महाराज की आड लेकर अपनी गन्दी राजनीति चलाना चाहती है । लेकिन शायद उसे यह ज्ञात नहीं कि शिवाजीने विधर्मी शासक सत्ता से देश को, धर्म को, संस्कृति को बचाने हेतु लोहा लिया था । वे अपनों से कभी लडे न थे । संयुक्त महाराष्ट्र का स्वप्न रानडे, गोखले और लोकमान्य तिलक का चिरस्थायी स्वप्न है । अखिल भारतीय काँग्रेस की स्थापना, संगठन, संवर्धन और संरक्षण करनेवालों के मन में सारे देश की प्रगति और सर्वोदय करने की भावना थी साथ ही महाराष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति की भी मनीषा थी । कोई भी कट्टर संयुक्त महाराष्ट्रवादी पहले भारतीय हैं और बादमें कुछ और ! मैंने बम्बई नहीं चाहिए ऐसा कभी नहीं कहा - बल्कि यह हमेशा कहता रहा कि बम्बई के लिए हडताल, निर्देशन, जुलूस और हुल्लडबाजी की जरूरत नहीं । बम्बई नहीं मिली तो क्या हम देश को ही जला देंगे, सरकारको ही उलट देंगे, भाई को ही लूटने लगेंगे । लडाई-झगडे और धाक-धमकी से बम्बई कभी नहीं मिलेगी और मिलेगी तो वह बम्बई न होगी । जिस शक्ति और निष्ठा के बल पर हमने बडी-बडी समस्याओं का सफलतापूर्वक सामना कर ध्येय-सिद्धि की है उसी तरीके से यह समस्या भी हल होगी । जहाँ अधिवेशन संपन्न हुआ वहाँ से ३०-३५ मील की दूरी पर पाकिस्तान की छावनियाँ ! और महापंजाब एवं पंजाबी सूबे की माँग करनेवाले पंजाब के दो साम्प्रदायिक गुटों के प्रचंड निर्देशन ! ये सब कारवाहियाँ किसी भी देशभक्त कार्यकर्ता के मन को सख्त आघात पहूँचानेवाली थी । अमृतसर काँग्रेस का वातावरण इन्हीं बातों से गूंजारित था । फलतः आज तक कभी राष्ट्रीय-ऐक्य की आवश्यकता महसूस न की हो उतनी इस समय की थी । हमारे प्रधान मंत्री खुद्द पंडित नेहरू ने आंचल फैला कर राष्ट्रीयएकता की अपील की थी ।
यशवंतराव की नीति इतनी सरल और वैचारिक होते हुए भी विरोधी दल संयुक्त महाराष्ट्र समिति ने इन्हें नामशेष करने में कोई कसर उठा न रखी । पूना नगर निगम द्वारा संचालित शिवाजी अखाडे में निर्मित खुले नाट्यगृह के उद्घाटन प्रसंग पर समिति समर्थकों ने काले निशानों से यशवंतराव का स्वागत किया । 'यशवंतराव मुर्दाबाद', 'सूर्याजी पिसाल लौट जाओ' आदि नारों से गगन गूंजा दिया । और जब वे वापस लौटे तब उस समय उनकी मोटर पर पत्थर तथा चप्पलों का मारा किया गया । निर्देशकों की खिल्ली उडाते हुए यशवंतरावने कहा : ''नाट्यमय वातावरण में ही आज मैं नगर निगम द्वारा निर्मित खुले नाट्यगृह का उद्घाटन कर रहा हूँ । विद्वत्ता एवं संस्कृति की केन्द्र भूमि पूना जैसे नगर की जनता भी भाषाकी आन्दोलन के क्षणिक आवेश की शिकार बन असभ्य और असांस्कृतिक व्यवहार करने से बाज न आई ।