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यशवंतरावजी चव्हाण व्यक्ति और कार्य -२३

पारिवारिक जीवन

विकट आर्थिक परिस्थिति का सामना करते हुए सतत अभ्यास शुरू रखकर सन् १९४० में यशवंतराव ने बी.ए.एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण कर 'वकालात' की सनद प्राप्‍त की । अत्यंत बुद्धिमत्ता, अद्‍भुत प्रतिभा, कानुनी व्यासंग, उत्तम वक्तृत्वशक्ति और राजनैतिक कार्यों के कारण उत्पन्न परिचित-वर्ग के बल पर उन्होंने केवल छह महीने की अल्पावधिमें ही अपनी वकालात की धाक कराड और आसपास के प्रदेश में अच्छी तरह जमा ली । वृद्ध माता विठाबाई तथा ज्येष्ठ भ्राता ज्ञानोबा और गणपतराव का वर्षो पुराना स्वप्न साकार हो उठा था । यशवंतराव अब पारिवारिक जिम्मेदारियाँ उठाने के लिए पूर्णरूपसे तैयार होगये थे । श्री गणपतराव व्यापार-वाणिज्य में सक्रिय बनकर कुटुंब की आर्थिक परिस्थिति सुधारने में दत्तचित्त थे । गणपतराव और यशवंतराव की कमाई से एकाध-दो वर्ष में ही चव्हाण-परिवार को आर्थिक स्थैर्य प्राप्‍त हो, भाग्य का 'सितारा' बुलन्द होनेवाला था । इन्हीं कल्पनाओं में खोई वृद्धा माँ की खुशी का पारावार न था । अपना बेटा काफी पढ-लिख गया; सफल वकील बना - इस बातका उन्हें अभिमान था । अब केवल एक-ही इच्छा बाकी थी । बेटे का बडे धामधूम से विवाह । मँगनियाँ आने लगी । यशवंतराव को अपना दामाद बनाने के लिए 'मराठा-समाज' के दिग्गज-परिवार चव्हाण परिवार के घर के चक्कर काटने लगे । लेकिन यशवंतराव की मनीषा उच्च-घराने की कन्या लेनेके बजाय अपने परिवार के लायक कोई अच्छी और गुणी कन्या लेने की थी । फलस्वरूप वकालात की सनद लेने के एक वर्ष बाद ही उपयुक्त कन्या उन्होंने खोज निकाली और उसे अपनी जीवन-सहचरी बनाने का निर्णय लिया ।

उस समय विश्व के क्षितिज पर युद्ध के ध्रुव-तारे का उदय हो चुका था । विज्ञान विनिपात का साधन बन गया था । विरोधी शक्तियाँ परस्पर भिड चुकी थी । भारत के राजनैतिक वातावरण में भी नई हलचल आने की कल्पना से देशके जननेता आशंकित था । विपत्ति के बादल घिर आये थे । ऐसा लग रहा था कि देश की आजादी के लिए देश को पुनः एक बार प्रचन्ड शक्ति से मोर्चा लेना पडेगा । ऐसे समय सन् १९४२ के मई में यशवंतराव का सौभाग्यकांक्षिणी सुश्री वेणुताई के साथ शुभ-मुहूर्त में पाणिग्रहण हुआ । विवाह के अवसर पर जिले के कार्यकर्ता, किसान-समाज और प्रदेश के अग्रगण्यों का शुभाशीर्वाद देने के लिए जमघट लग गया था । कराड में इससे पूर्व इतना बडा समुदाय किसी के विवाह में एकत्रित न हुआ था । यह उनके अल्पावधि में अर्जित अपूर्व लोकप्रियता का उत्कृष्ट उदाहरण था ।

विवाह को अभी कुछ ही दिन व्यतीत हुए थे कि सन् बयालीस के प्रचंड आन्दोलन के शंख और नगाडें बजने शुरू हो गये । ब्रिटिश सरकार की ओर से भारतीय जननेताओं के साथ समझौता वार्ता करने के लिए सर स्टेफर्ड क्रिप्स का भारत में आगमन हुआ । उनकी योजना भारतीय नेताओं को पसंद न आई । वार्ता-भंग हुई । पूर्व में जापान की दिन-ब-दिन विजय हो रही थी । भारतीय सीमाएँ खतरे से खाली न थीं । सभी के मन आतंकिय थे । इधर राष्ट्रीय महासभा काँग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता का पुनरोच्चार किया । फलतः सरकारी दमनचक्र और परदेशी आक्रमण की आशंका से भारतीय जनता और भी आशंकित हो उठी । वैवाहिक जीवन के प्रारम्भ में ही उद्‍भवित विविध घटना-प्रवाहों से यशवंतराव की मनःस्थिति अस्थिर सी बन गई थी । शैशव से ही राजनीति से सक्रिय-सम्पर्क होने के कारण यशवंतराव के मन पर राजनैतिक दैनंदिन घटनाओं का परिणाम होना स्वाभाविक ही था । परिणय के तत्काल पश्चात् प्रस्थान की बेला आगई । बम्बई में काँग्रेस का महत्वपूर्ण अधिवेशन और 'Quit India' का प्रस्ताव ! सरकारी दमनचक्र का दौर जोर पर था । गोलीबार, अश्रुवायु और छडीमार की घटनाएँ दैनंदिन होगई थीं । बम्बई अधिवेशन के पश्चात् भूगर्भ संगठन का नेतृत्व करने यशवंतराव भी आन्दोलन की लपटों में कूद पडे । फलतः वकालात बन्द हो गई । आमदनी का जरिया टुट गया । आर्थिक अस्थिरता में राजनैतिक प्रतिकूल प्रवृत्ति ने और भी वृद्धि कर दी । चव्हाण-परिवार पर आपत्ति के बादल छा गये । वृद्ध माता और ज्येष्ठ बन्धु की मानसिक शांति गायब होगई । नवपरिणीता के मन पर भी सख्त आघात पहुँचा । भूगर्भ आन्दोलन का नेतृत्व करते यशवंतराव कभी कभी प्रकट हो कर परिवार, वृद्ध माँ और ज्येष्ठ बन्धु को धीरज से काम लेने का अनुरोध करते रहते थे । लेकिन प्रखर ध्येयनिष्ठा की कसौटी के अनन्तर प्राप्‍त अपूर्व धैर्य और मानसिक शांति भला लौकिक जीवनोपभोग करनेवाले लोगों में कैसे हो सकती है ? परिणामतः बारबार सांत्वन-आश्वासन से पारिवारिक दुःख कम न हुआ बल्कि समय के साथ बढता ही गया । उसमें भी पुलिस की झंझट रात-दिन पीछे लगी हुई थी सो अलग । इस तरह चव्हाण-परिवार पर आपत्ति और संकटों का पहाड टूट पडा । कहते हैं न कि जब आपत्ति आती है तब चारों ओर से आती है ।