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यशवंतरावजी चव्हाण व्यक्ति और कार्य -२१

भूमिगत जीवन में यशवंतराव का स्थायी निवास पूना में ही था । जब कभी आवश्यकता पडती वे दो-चार दिनों के लिए बाहर जाते और काम निपट कर लौट आते । उस समय उनके साहित्यिक मित्र श्री दयार्णव कोपर्डेकर का वासस्थान पूना में था । यशवंतराव खाने-पीने और सोने के लिए उनके घर जाया करते थे । लेकिन उन पर कभी संकट नहीं आने दिया । इसका मूल कारण था उनकी संयमित वृत्ति और सतत सजगता ! महाराष्ट्र के दूसरे भूमिगत कार्यकर्ताओं की तरह इन्होंने भूल कर भी कभी वेश-परिवर्तन नहीं किया और ना ही कभी अतिशियोक्तिपूर्ण बर्ताव । उन्होंने कभी दाढी-मूंछ नहीं
लगाई । वे प्रायः अपने सारे लिबास धोती, नेहरू शर्ट, टोपी और जॅकेट में ही रहते थे । भूमिगत जीवन में भी यशवंतराव समय के पूरे पाबन्द थे । समय-बेसमय कभी कहीं वे भटकते नजर नहीं आये । उनका अपने मित्र श्री कोपर्डेकर पर अटूट विश्वास था । पूना में उनके सारे कार्यक्रमों की जिम्मेदारी श्री कोपर्डेकर की होती थी । जब कभी किसी कार्यकर्ता को यशवंतराव से मिलना होता या यशवंतराव किसी से मुलाकात लेना चाहते तो उनके मुलाकात की व्यवस्था श्री कोपर्डेकर ही किया करते थे । ऐसी भेंट-मुलाकातें और गोष्ठियों का आयोजन पूना के विभिन्न स्थानों पर उनके मित्रों के यहाँ हुआ करता था । लेकिन यशवंतराव खुद इतने सावधान रहते थे कि कभी किसी मित्र का बाल भी बांका न हुआ ।

समयसूचकता के कारण एक बार वे गिरफ्तार होते बाल बाल बच गये । यह घटना उनके भूमिगत जीवन में ही घटित हुई थी । एक बार वे जंगली महाराज रोड पर अपने मित्र श्री सदु पेंढारकर और दूसरे मित्रों के साथ बैठे ताश खेल रहे थे । उस समय किसी गुप्‍तचरने देख लिया । उनकी गिरफ्तारी के लिए १००० रुपये का नकद इनाम पहले ही घोषित हो चुका था । गुप्‍तचर ने यह खबर पुलिस कचहरी में दी और रातमें अचानक छापा मार कर उन्हें गिरफ्तार करने की योजना बनाई गई । सोने के बाद यशवंतरावको अचानक अपने पिताजी के एक मुस्लिम मित्र के निमंत्रण का स्मरण हो आया । उनके यहाँ कोई धार्मिक उत्सव था और उसका प्रसाद लेने के लिए बुलाया था । रातका कोई ११-१२ का समय होगा । इतनी रात गये किसी के यहाँ जाना ठीक नहीं । अतः उनका मन आनाकानी करने लगा । लेकिन कोई अदृश्य शक्ति उन्हें बार बार विवश कर रही थी जाने के लिए लश्कर (camp) में उन मुस्लिम सज्जन के यहाँ ! आखिर रातके कोई बारह बजे वे अपने पिताजीके बुजुर्ग मित्र के यहाँ जाने का निश्चय कर घर से निकल पडे । प्रातः चार बजे उन्हें गिरफ्तार करने के लिए पुलिसने छापा मारा । लेकिन यशवंतराव वहाँ न मिले । उनके मित्र सदु पेंढारकरको ही पुलिस गिरफ्तार कर सकी । पुलिस की निराशा का पारावार न रहा । अगर यशवंतराव रातमें वहाँ से निकल न जाते तो गिरफ्तार होते देर न लगती । आगे चल कर सदु पेंढारकर की जेल में ही मृत्यु हुई ।

लाख कोशिश के बावजूद भी जब पुलिस यशवंतराव को गिरफ्तार करने में सफल न हुई तब पुलिस ने दूसरा मार्ग अपनाने का निश्चय किया । वे नाना प्रकार से चव्हाण परिवार को कष्ट देने लगे । पुलिसने सर्वप्रथम उनकी धर्मपत्‍नी सुश्री वेणुताई को गिरफ्तार कर सींकचों में बंद कर दिया । फलतः परिवार के लोगों को अत्यंत वेदना और व्यथा पहुँची । वैसे भी यशवंतराव के जीविकोपार्जन के लिए आवश्यक कार्यों को छोड राजनीति में सक्रिय भाग लेना । उनके गरीब परिवार के लिए आर्थिक विषमता को बुलावा देना ही था । फिर भी यशवंतराव के अलावा परिवार के दूसरे सदस्यों को किसी बात की तकलीफ न थी । लेकिन सुश्री वेणुताई की अचानक गिरफ्तारी से परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ वयोवृध्दा सुश्री विठाबाई को भी जबरदस्त आघात पहूँचा । इसका असर वेणुताई पर भी जेलमें हुआ, फलस्वरूप कित्येक वर्ष तक उन्हें फिटस् आती रहीं । दो महीने तक प्रतीक्षा कर सरकारने सुश्री वेणुताई को रिहा कर, इनके मंझले बन्धु श्री गणपतराव को स्थानबद्ध किया और भानजे बाबुराव पर स्टेशन जलाने के अपराध में मुकदमा चलाया । इससे यशवंतराव के क्रोध का पारावार न रहा । वे सरकार के ऐसे षडयंत्रों से अनभिज्ञ थे ऐसी बात नहीं - पर सरकार इस हद तक निर्दोष और निरपराधों पर जुल्म गुजार सकती हैं - इस बातका गुस्सा था । उन्होंने अपने प्रकट न होने से सरकार द्वारा आये दिन आनेवाली आपत्तियों से परिवार को बचाने हेतु खुद को पुलिस के हवाले करने का मन ही मन निश्चय किया । और तदनुसार पूना केम्प में अपने रिश्तेदार के यहाँ उतरे सातारा जिले के एक पुलिस अधिकारी के समक्ष अचानक प्रकट हो कर उन्हें गिरफ्तार करने का अनुरोध किया । यशवंतराव को यों अचानक प्रकटा देख, पुलिस अधिकारी स्तिमित हो उठा । यशवंतराव को गिरफ्तार कर, वह देशद्रोही बनना नहीं चाहता था । अतः उसने अल्पावधि तक कुछ सोच-विचार कर यशवंतराव से हस्तान्दोलन किया और उन्हें वहाँसे शीघ्र ही निकल जाने का आग्रह किया । इस उदाहरण से ही हम अनुभव कर सकते हैं कि देश की आजादी के लिए जिस कदर जनता और जननेता उत्सुक थे और स्वराज्य के स्वप्न को साकार करने में तन, मन, धन से जुटे हुए थे ठीक उसी कदर सरकारी अधिकारी भी देश को आजाद देखना चाहते थे ।