दूसरे सप्ताह के प्रारम्भ में ही वे विद्यार्थियों की गुप्त सभा में यकायक प्रकट हुए । उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा : ''यह आन्दोलन सरकार के कारागृह भरने का नहीं है बल्कि 'करो या मरो' का जयघोष दिगन्त में गूंजा कर सदियों से कुंभकर्णी-नींद में बेखबर पडी जनता-जनार्दन को जगा कर आजादी का जंग शुरू करनेका है । हमारे सर्वस्व का तो बलिदान इसमें होगा ही साथ ही समय आने पर स्व-प्राणों की आहुति भी देनी होगी । देशमें पैदा हुई विषम परिस्थिति और उसमें तुम्हारा अपना स्थान निश्चित करने के पहले अच्छी तरह विचार कर लेना । वर्ना आगे जाकर पश्चात्ताप करने का अवसर न आवे । तुम्हें अपने माता-पिता, सगे सम्बंधी, पढाई-लिखाई सभी को तिलांजलि देनी होगी । भावी जीवन की जो सुखद कल्पनाएँ की हैं वे सब क्षणार्ध में चकनाचूर हो जाएँगी । यह सब कर गुजरने का जिसमें साहस है, उत्साह है, उत्कंठा है वही क्रांति का सैनिक बन सकेगा । जो इसके लिए तैयार हैं - उसे मैं भावी - कार्य की रूपरेखा बताने को तैयार हूँ ।'' इनके इस कथन पर पूर्ण विचार कर लगभग चालीस-पचास विद्यार्थी शालेय शिक्षण का परित्याग कर स्वतंत्रता आन्दोलन में सम्मिलित हुए । कराड जैसी पंदरह हजार आबादी के कस्बे में चालीस-पचास कार्यकर्ताओं का सोत्साह देश की आजादी के लिए हर प्रकार की यातनाएँ सहने के लिए तैयार होना यशवंतराव की अलौकिक लोकप्रियता और कुशल नेतृत्व का उत्कृष्ट उदाहरण है ।
बयालीस के आन्दोलन में भूमिगत प्रवृत्तियाँ करने के लिए नौजवानों का जो एक गुट तैयार हुआ, उसकी बागडोर यशवंतराव के ही हाथमें थी । इस तरह जिलेका नेतृत्व करने की उनकी यह दूसरी बारी थी । पहली बार व्यक्तिगत-सत्याग्रह के दिनों में जब जिलाध्यक्षने सत्याग्रह कर कृष्णमंदिर की राह ली थी तब एक वर्ष तक वे स्थानापन्न जिलाध्यक्ष मनोनीत हुए थे और इस बार भूमिगत कार्यकर्ताओंकी सर्वसम्मति से सर्वाधिकारी (dictator) बने थे । यशवंतराव के कार्यग्रहण करने से कराड के विद्यार्थियों के जिम्मे जिले में बुलेटिन्स बाँटना, संदेश पहूँचाना, प्रचार करना, मोर्चे निकालना और उनका नेतृत्व करना, स्टेशन, मालगोदाम, और डाकगाडी लुँटना तथा जलाना, टेलिफोन के तार तोडना, सरकारी कार्यों में अवरोध उपस्थित करना आदि कार्य विध्वंसक कार्य थे, जिन्हें हर नौजवान ने बडी ही सावधानी और निष्ठापूर्वक निभाया था । जिले के कराड, वडुज, पाटण, वालवे, तासगाँव आदि कस्बों में यशवंतराव सरकारी कचहरियों पर बहुत बडे पैमाने पर जन-मोर्चे संगठित कर ले गये थे और उनका योग्य मार्गदर्शन भी किया था । अल्पावधि में ही सातारा जिले के विद्रोही नौजवानों की प्रेरक-शक्ति के रूपमें यशवंतराव ने ख्याति प्राप्त कर ली थी । फलतः वे सरकार की आँखो में काँटे की तरह खटकने लगे । वह उन्हें शीघ्रातिशीघ्र गिरफ्तार करना चाहती थी । पर निरुपाय था । आखिरकार सरकारने एक असाधारण विज्ञप्ति के जरिये श्री नाना पाटील, श्री किसन वीर, श्री बाबुराव चरणकर, पांडू मास्तर और यशवंतराव को गिरफ्तार करानेवाले को १००० रुपये का नकद इनाम घोषित किया । लेकिन अंत तक वे किसी के हाथ न आये और भूमिगतों का नेतृत्व करते रहे ।
यशवंतराव जिस तरह एक कुशल संगठक है ठीक उसी तरह उनमें दूरदृष्टि और कुटनीतिज्ञ की पैनी बुद्धि भी है । जिस दृष्टि को लक्ष्य में रख, उन्होंने ९ अगस्त ४२ को भूमिगत-आन्दोलन का सूत्र-पात किया था उसी तरह सन् १९४३ के मध्य में उनकी दूरदर्शी बुद्धि ने परख लिया कि बयालीस के आन्दोलन की जनशक्ति अब दिन-ब-दिन शिथिल होती जा रही है । सारे देश में निराशा का ज्वार आगया है । पूज्य बापू जेल से रिहा कर दिये गये हैं और आन्दोलन स्थगित करने की आवाज धीरे-धीरे बल पकडती जा रही है । अतः हमें भी अपने जिले के आन्दोलन के बारे में पुनः सोच-विचार करना चाहिए और अवसर मिले तो पूज्य बापू का मार्गदर्शन प्राप्त कर खुद को सरकार के हवाले कर देना चाहिए । सेनापति को ज्यों व्यूह-रचना की संपूर्ण जानकारी होना परमावश्यक है त्योंही समय आने पर युद्ध को स्थगित कर अपनी हानि रोकने की नीति में भी पारंगत होना चाहिए । तदनुसार यशवंतराव ने आन्दोलन स्थगित करने विषयक अपने विचारों से सहकार्यकर्ताओं को पहले से ही अवगत कर दिया था । काफी चर्चा-विचारणा के पश्चात् अस्थायी तौर पर आन्दोलन स्थगित करने के लिए सब की सम्मति प्राप्त हो सकी थी - लेकिन गान्धीजी के कथनानुसार स्वयं को पुलिस के हवाले करने के बारे में सभी का कडा विरोध था । परिणामस्वरूप आन्दोलन का ऐक्य बनाये रखने के लिए यशवंतराव स्वयं भी गिरफ्तार होने तक भूमिगत ही बने रहे ।
यशवंतरावने भूमिगत कार्यकर्ताओं का जो सुदृढ संगठन निर्माण किया उसके बदौलत सारे महाराष्ट्रमें सन् ब्यालीस के आन्दोलन में सातारा जिला सिरमौर रहा । इस संगठनने आगे चल कर प्रति सरकार और ग्रामराज्य संस्थाओं को जन्म दिया उसके पीछे यशवंतराव की दीर्घदृष्टि और संगठन-चातुर्य ही काम कर रहा था । सन् बयालीस की क्रांति का सिंहावलोकन और उससे काँग्रेस-संगठन की शक्ति में हुई वृद्धि पर विचार करते समय प्रायः यशवंतराव कहते हैं : ''प्रस्तुत आन्दोलन से काँग्रेस संस्था को कितने नौजवान, एकनिष्ठ कार्यकर्ता उपलब्ध हुए उसी पर इसका यशापयश अवलम्बित हैं ।'' यशवंतराव के पश्चात् जिले का सूत्र-संचालन उनके सहयोगी मित्र श्री पांडू मास्तर, श्री के. डी. पाटील और श्री किसन वीर के हाथों में गया, जिसे उन्होंने अंततक बडी योग्यता से चलाया ।