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यशवंतरावजी चव्हाण व्यक्ति और कार्य -१७

राजनीतिक क्षेत्र में उनके ऐसे भी साथी हैं, जो कभी इनके लंगोटिये यार रहे होंगे । लेकिन वे केवल राजनीतिक कारणों से कभी किसी को मित्र नहीं बनाते । और तभी तो उन्होंने अपने मित्रों के बल और सहयोग से बडी-बडी मंझिलें तय की हैं । हमने प्रायः देखा कि एक बार मित्रों में मतभेद हो जाते ही वे एक-दुसरे के जान के ग्राहक बन जाते हैं । एक समय के अपने अभिन्न हृदय मित्र की निंदा करते नहीं अघाते । लेकिन यशवंतराव के बारे में ऐसा बिल्कुल नहीं है । और इसी कारणवश उनके कई मित्र आज विरोधी शिबिर में होते हुए भी सही अर्थ में मित्र हैं और विरोधी शिबिर के कितने ही लोग उनके मित्र बन गये हैं । यशवंतरावने अपनी मित्रता को भूल कर भी कभी राजनीतिक क्षेत्र में आडे नहीं आने दी । जिसे जो बात नहीं बतानी है वे उसे स्पष्ट कह देंगे । पर उसे फँसाने की बात कभी नहीं करेंगे । श्री गौरिहर सिंहासने, श्री दयार्णव कोपर्डेकर, श्री राघुअण्णा लिमये, श्री आत्माराम जाधव, श्री हरिभाऊ लाड एवं श्री शांताराम देसाई यशवंतराव के घनिष्ट मित्रों में से हैं, जो समय-बेसमय अपने मित्र के लिए एक पैर खडे दृष्टिगोचर होते हैं । ठीक वैसे ही राजनीतिकक्षेत्र में श्री यशवंतराव पालेकर, श्री किसन वीर, तर्कतीर्थ लक्ष्मणशास्त्री जोशी, श्री वसंतराव पाटील, श्री धुलप्पा नवले, श्री वसंतराव नाईक, श्री दत्ता देखमुख, लोकसत्ता के संपादक ह. रा. महाजनी, साथी एस. एम. जोशी, भाई छन्नुसिंग चन्देले आदि मित्र हैं । ये सब इनके सुख दुःख के साथी रहे हैं ।

मित्र-प्रेम के कारण यशवंतरावको काफी सहन भी करना पडा है । विरोधियों द्वारा किये गये आक्षेपों के कारण वे सार्वजनिक जीवन से सदा के लिए उठ जाते हैं या क्या ? इस बात की चिंता इनके घनिष्ट मित्रों में सदा बनी रही है । पर यशवंतरावने कभी किसी बात की परवाह न की । इनके कॉलेज-जीवन के एक अभिन्न हृदय मित्र श्री के. डी. पाटील ! उन पर सन् १९४७ में वालवे तहसील और आस-पास के प्रदेश के व्यक्ति-द्वेष्टा लोगोंने बम्बई राज्य के भूतपर्वू विधायक श्री चंदु पाटील ऊर्फ कारभारी के खून का आक्षेप लगा कर उनके विरुद्ध आकाश-पाताल एक कर दिया । विरोधी इतना करने पर भी शांत न रहे बल्कि उन्होंने इस प्रकरण में यशवंतराव को भी घसीट लिया । यों देखा जाय तो कारभारी के प्रति इनके हृदय में आदर और स्नेह की भावना थी । श्री कारभारी भी के. डी. पाटील को अपने बेटे से भी ज्यादा चाहते थे । ऐसे बुजुर्ग का कभी खून हो सकता है ? और वह भी उन लोगों के हाथों, जिन्हें श्री कारभारीने अपने स्नेह, अनुभव और ममता से आगे बढाया हो ? लेकिन भाई-भाईके झगडे ने और परस्पर-विरोधी भावनाओंने कारभारीके खून को महत्व दे, उन्हीं के संगी-साथियों को बदनाम कर सार्वजनिक-जीवन से सदा कें लिए उठाने का बीडा उठाया था । के. डी. पाटील उसी गाँव के उत्साही कार्यकर्ता और युवक विधायक थे । साथ ही प्रतिष्ठित वकील । कायदे-कानुन का जानकार एक सफल वकील भला कभी अपने बुजुर्ग को खत्म कर सकता है ? लेकिन इस बातको सोचता कौन ? विरोध का बवण्डर जो उठ खडा हुआ था । अपने विरुद्ध होनेवाले गन्दे प्रचार और जलील हरकतों से श्री के. डी. पाटील को सख्त आघात पहूँचा था । उन्होंने अपनी आंतरिक वेदना एक मित्र के नाते यशवंतरावके सामने साश्रु प्रकट की थी । इस प्रकरण को जोर शोर से बढावा देनेवाले विरोधी-शिबिर में विरोधी-दलोंके लोगों के अलावा उनके अपने दलके काँग्रेसजन भी थे । वालवे तहसील के इस जहरीले प्रचारने आखिर एक युवक विधायक और जिलेके उत्साही कार्यकर्ता श्री के. डी. पाटीलका बलि लेकर ही पीछा छोडा ।

श्री के. डी. पाटीलके अमानुष खूनसे यशवंतरावके हृदयको जबरदस्त धक्का पहुँचा । उन्हें ऐसा लगा जैसे उन पर आपत्तियों का पहाड ही टूट पडा हो । कई दिनों तक वे मित्र विरहकी वेदनामें व्यथित होते रहे । लेकिन उन्होंने अपनी कर्तव्य-बुद्धिको कभी नहीं छोडा या किसीके बहकावेमें आकर श्री पाटीलके खूनके लिए जिम्मेदार वर्गसे बदलेकी भावना न रखी । जो कुछ भी यातनाएँ पडी खुद ही चुपचाप सहते रहे । वे भली-भाँति जानते थे कि श्री पाटीलके खूनके पीछे दूसरे लोगोंके साथ एक काँग्रेस कार्यकर्ता का भी हाथ है । फलतः उस पर यशवंतरावका गुस्सा होना स्वाभाविकही था । लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब यशवंतरावको शिवजी की तरह दलनिष्ठा और देशकी भलाई के लिए हलाहल जहर पीना पडा । जब बहुजन समाज की आड लेकर श्री जेधे-मोरे जैसे महाराष्ट्र के चोटी के काँग्रेसी नेता काँग्रेस का परित्याग कर विरोधी-शिबिर में जा बैठे । तब सारे महाराष्ट्र में काँग्रेस-विरोधी आग धू-धू कर जलने लगी थी । महाराष्ट्र काँग्रेस में जगह-जगह दरार पड रही थी । इस संक्रमण काल में काँग्रेस संस्था को अगर महाराष्ट्र में बनाये रखना है तो स्वार्थत्याग, परस्पर विरोधी भावना और आपसी मतभेदों को तिलाञ्जलि देना प्रत्येक काँग्रेसी का आद्य कर्तव्य था । इस कसौटी में से भी यशवंतराव पार उतरे । उन्होंने दक्षिण सातारा जिले में काँग्रेस को जिन्दा रखने के लिए अपने परम मित्र श्री के. डी. पाटील के खून के लिए जिम्मेदार काँग्रेसी कार्यकर्ता को सक्रिय साथ देकर अपनी दलनिष्ठा का अपूर्व उदाहरण दिया ।