यशवंतरावने राजनैतिक-शिक्षाका प्रथम पाठ पूना जेलमें लिया । वह सन् १९३१ का जमाना था । यशवंतराव उस समय कराडके तिलक माध्यमिक शालाके विद्यार्थी थे । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा प्रारम्भ किये गये असहयोग आन्दोलनमें महाराष्ट्रके कोने-कोनेसे सत्याग्रहियोंके जो जत्थे उमडे पडे थे उसमें सातारा जिलेके जत्थेमें ज्यादातर तरुण और किशोरोंकी भर्ती थी । ये तरुण और किशोर समाजके सभी वर्गोमेंसे थे । इसी जत्थेमें किशोर यशवंतराव भी एक थे । पूना-विसापुर जेलमें वे 'बेक बेंचर' कहलाते थे ।
पूनाकी यरवदा सेन्ट्रेल जेल उन दिनों सारे देशमें प्रख्यात हो चुकी थी । देशके विभिन्न भागों में गिरफ्तार किये गये असंख्य राजनैतिक कार्यकर्ताओंका वह तीर्थधाम बन गई
थी । यहाँ मद्रासी भी थे, बंगाली भी थे और हिमालयके बेटे भी बन्द थे । देशकी सभी भाषा, रीतिरिवाज और पोषाकका सुन्दर संगम जेलमें देखनेको मिलता था । कराडसे आये हुए जत्थे में यशवंतराव के अलावा श्री दयार्णय कोपर्डेकर, श्री गौरिहर सिंहासने, श्री राघुअण्णा लिमये, श्री हरिभाऊ लाड आदि मुख्य थे । जब कि राजस्थानके जननेता श्री गोकुलभाई भट्ट, गांधीजीके पत्र 'यंग इन्डिया' के संपादक श्री मोहनभाई भट्ट, हिमालयके आश्रमवासी स्वामी सुरेंद्रजी, बम्बईसे प्रकाशित मराठी दैनिक लोकसत्ताके सम्पादक श्री ह. रा. महाजनी, भाई भुस्कुटे, प्रजासमाजवादी नेता श्री एस. एम्. जोशी आदि यरवदा सेन्ट्रेल जेलके बैरक नम्बर १२ के भूषण कहलाते थे । यरवदा सेन्ट्रेल जेलमें यशवंतराव और श्री कोपर्डेकरने श्री ह. रा. महाजनी की निगरानीमें प्रथम बार महाकवि कालिदास कृत संस्कृत कृति 'शाकुंतल' का वाचन कर उसके अर्थको आत्मसात करनेका प्रयत्न किया । ठीक वैसे ही भाई भुस्कुटे की मार्क्सवाद प्रणीत विचार-धारा तथा निरीश्वरवाद और श्री महाजनीके ईश्वरवाद गीता आदि परके हरएक प्रवचनोंमें उपस्थित रहकर उसमें रहे रहस्यको समझनेका पूरा प्रयास किया था । साथ ही उन्होंने गुजराती और उर्दू भाषाका विशेष अध्ययन भी यहीं पर किया था ।
कुछ दिनोंके बाद यरवदा बैरक नम्बर १२ के सभी राजनैतिक कैदियोंको विसापुर जेलमें भेज दिया गया । वहाँ उनके साथ कराडके श्री लिमये, कोपर्डेकर, सिंहासन थे ही । उस समय विजापुर जेल यानी महाराष्ट्रके जाने-माने चोटीके राजकीय नेताओंका अड्डा था । गांधीवादके प्रबल समर्थक और प्रवक्ता आचार्य भागवतजीके राजनैतिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक पाथेयसे परिपूर्ण प्रवचन रातमें नियमन रूपसे हुआ करते थे । समाजवादी तत्त्वज्ञानके अधिकारी वक्ताके रूपमें बम्बई राज्यीय प्रजा-समाजवादी दलके नेता साथी एस. एम्. जोशी भी बडी खूबीसे समाजवादी तत्वोंकी संजीवनी पान कराते थे । भारतके कृषि-मंत्री श्री स. का. पाटील अपनी ओजस्वी वाणीमें 'पत्रकार तथा पत्रकारीत्व' विषयकी बारिकियोंको हृदयंगत कराते हुए देश-विदेशके 'जर्नालिज्म' का इतिहास राजबंदियोंके सामने रखते थे और स्वेच्छया तीसरा वर्ग लेनेवाले रावसाहब पटवर्धन सत्याग्रहियोंको गांधीवादकी खूबियोंसे परिचित कराते थे । इस तरह वैचारिक संघर्षमें, यशवंतरावको राजनीतिक क्षितिजके नवरंगोंको जानने और परखनेका अवसर मिला, जिसका इनके भावी जीवनको गठित करनेमें बहुत बडा हाथ है ।
सन् १९३६ से १९३९ तककी सातारा जिला काँग्रेस समिति, महाराष्ट्र प्रदेश काँग्रेसके लिए सिरदर्दका एक बडा विषय बन गई थी । उस समय महाराष्ट्र प्रदेश काँग्रेसका नेतृत्व श्री शंकरराव देव और उनके गांधीवादी साथियोंके हाथ में था । जब कि सातारा काँग्रेस समितिमें गांधीवादी कार्यकर्ताओंके बजाय रॉयिस्ट और समाजवादी कार्यकर्ताओंकी अधिक भीड थी । अतः पूनासे किसी न किसी कार्यकर्ताका आगमन सातारा होता ही रहता था । ऐसे समय तासगाँवमें तर्कतीर्थ श्री लक्ष्मणशास्त्री जोशीके नेतृत्व में सातारा जिला राजनीतिक परिषद हुई, जिसमें श्री मानवेन्द्रनाथ रायकी विचारधाराका समर्थन कर परिषदने उसमें अपना विश्वास व्यक्त किया । आजके क्रांतिसिंह श्री नाना पाटील उस समय शत-प्रतिशत गांधीवादी थे । रॉयकी विचार-धारा का समर्थन करनेका अर्थ उन्होंने महात्मा गान्धीके प्रति अविश्वासकी भावना समझा और उन्होंने अपने साथी-कार्यकर्ताओंकी सहायतासे परिषद को ही भंग कर दिया । इस घटनासे युवक यशवंतके मनको बहुत व्यथा हुई । वे उदास होकर कराड लौटे ।