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यशवंतरावजी चव्हाण व्यक्ति और कार्य -५६

किसान का बेटा ही किसान के सुख-दुःख और मुश्किलियोंसे परिचित होता है । तभी यशवंतराव सहकारी कृषि और सहकारी खरीदी-विक्री पद्धति को लागू करने के पक्ष में हमेशा से ही रहे हैं । अखिल भारतीय काँग्रेस के गोहत्ती अधिवेशन में 'कृषि सुधार' का प्रस्ताव काँग्रेस श्रेष्ठि वर्ग के आग्रह से यशवंतरावने पेश किया था । प्रस्ताव पेश करते हुए उन्होंने अपने भाषण में कहा कि कृषिसुधारविषयक राज्यीय और केन्द्रीय सरकार के नियम सरल होने चाहिए, जिन्हें अनपढ किसान भी आसानी से समझ सके । वर्ना उनमें जो क्लिष्ट भाग होगा और जिसे किसान समझ न सकेगा धनिक वर्ग द्वारा उसका दुरुपयोग होने देर न लगेगी । ग्राम्य-समाज की सर्वांगीण उन्नति का बहुत-कुछ आधार इसी पर है ।'' प्रस्तुत प्रस्ताव के द्वारा काँग्रेसने कृषिसुधारविषयक तत्व शीघ्रातिशीघ्र कार्यान्वित कर स्वयंपूर्ण ग्रामोद्धार पर अवलम्बित सहकारी ग्रामीण अर्थरचना की स्थापना एवं विस्तार का आदेश दिया गया था ।

अल्पबचत योजना के लाभालाभ को दृष्टिगत रख कर यशवंतरावने हमेशा अल्पबचत योजना अभियान का जोरदार पुरस्कार किया है । उनके विचार में अल्पबचत योजना धनिक वर्ग के बजाय मध्यमवर्ग तथा गरीबों के लिए अत्यंत उपयोगी और अधिक उपयुक्त है । इससे दो लाभ होते हैं । नई नई योजना-प्रयोजनाओं को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सरकार को आवश्यक धनशक्ति मिलती है और प्रजाकी अपनी संपत्ति में वृद्धि होती है । अमुक अवधि के पश्चात् वही रकम मयब्याज के पुनः प्राप्‍त होती है । अष्टा गाँववासियों को अल्पबचत योजनान्तर्गत १,३६,४३० की राशि देने पर, उनको बधाई देते हुए मुख्य मंत्रीने कहा था : ''हम अच्छे और समझदार व्यक्ति को 'लाख रुपये का आदमी' कह कर सम्मानित करते हैं, लेकिन तुम लोगोंने अल्पबचत योजना में लाख रुपये से भी अधिक रकम प्रदान की है । अतः तुम्हें 'सव्वा लाखी' के बिरुद से सम्मानित करना चाहिए ।''

महाराष्ट्र के इतिहास-प्रसिद्ध प्रतापगढ दुर्ग में युगपुरुष छत्रपति शिवाजी महाराज की अश्वारोही प्रतिमा का अनावरण-प्रसंग यशवंतरावके जीवन पृष्ठों में सुवर्णाक्षरोंसे अंकित किया जाएगा । ऐसे चिरस्मरणीय स्मारक की मूल कल्पना बम्बई के भूतपूर्व राज्यपाल और उत्कल के मुख्यमंत्री डॉक्टर हरेकृष्ण मेहताब जब पहली बार प्रतापगढ गये थे तब, की थी । उन्होंने अपनी कार्यावधि में शिवाजी महाराज की जयंति की सार्वजनिक छुट्टी घोषित करवाई । उस समय भाषाई आन्दोलन का कहीं नामोनिशान न था । स्मारक के लिए योग्य स्थान और समय निर्धारित करने का कार्य सातारा की रानीसाहिबा की अध्यक्षतामें गठित शिवस्मारक समिति के जिम्मे सिपूर्द किया गया । यशवंतराव भी उक्त समिति के एक सदस्य थे । समितिने ऐतिहासिक दुर्ग प्रतापगढ में शिवाजी महाराज की अश्वारोही प्रतिमा की अनावरण विधि आधुनिक युगपुरुष पंडित जवाहरलाल नेहरू के शुभ हाथों सम्पन्न कराने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया । यह कार्य सन् १९५६ में ही सम्पन्न होनेवाला था । लेकिन पंडितजी, अधिकाधिक कार्यव्यस्तता के कारण मन से लाख चाहने पर भी समय न निकाल सके । अतः विलम्ब हो गया । और यह प्रसंग जब आया तब राज्यपुनर्गठन आयोग के प्रतिवेदन के कारण सारा महाराष्ट्र काँग्रेस के खिलाफ था । ऐसी विषम परिस्थिति में ३० नवम्बर १९५७ के दिन प्रतापगढ में शिवाजी की प्रतिमा अनावरण करने पंडित नेहरू महाराष्ट्र में आ रहे थे ।

समितिने उपरोक्त प्रसंग को कालिमा लगाने के विचार से पंडित नेहरू के खिलाफ प्रचंड प्रदर्शन और निर्देशन करने का निश्चय किया । समितिनेता एक बार फिर गरल ओकने लगे । महाराष्ट्र के कोने कोने से संयुक्त महाराष्ट्रवादी पंडित नेहरू के विरुद्ध निर्देशन करने प्रतापगढ आनेवाले थे । समिति के इस निर्णय को रोकने के अनेक प्रयत्‍न हुए । खुद यशवंतरावने १० अक्तूबर १९५७ को बम्बईमें समितिनेताओं से अपील कर अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह करते हुए कहा : ''प्रतापगढ का कार्यक्रम, यह आधुनिक युग पुरुष द्वारा ऐतिहासिक युग-पुरुष के प्रति सार्वजनिक रूपसे अर्पित श्रध्दा और भक्ति का कार्यक्रम है । हिन्दूपदपादशाही के जनक छत्रपति शिवाजी के प्रति राष्ट्रीय नेता की मानवंदना है । यह कार्यक्रम भारत की ४० कोटि जनता की असीम श्रध्दा और भावना का मूर्तिमंत प्रतीक है । अतः ऐसे चिरस्मरणीय सांस्कृतिक प्रसंग पर छोटी-मोटी राजकीय बातों को पकड कर उसे अमांगलिक बना, भारतीय जनता की नजर में महाराष्ट्र को गिराना उपयुक्त न होगा ।'' लेकिन उलटे घडे पर पानी डालने पर वह कभी ठहरा है ? कुत्ते की पूँढ छह महीने तक गड्ढेमें गाढने पर भी वह कहीं सीधी हुई है ? ठीक उसी तरह समितिने अपना दुराग्रह अंत तक न छोडा सो न छोडा ।