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यशवंतरावजी चव्हाण व्यक्ति और कार्य -५४

जैसे जैसे चुनाव की तिथियाँ निकट आने लगी विभिन्न दलों का प्रचार आन्दोलन भी प्रचंड रूप धारण करता गया । काँग्रेस को विभिन्न विभागों में विभिन्न गुटों से मुँह देना था । महाराष्ट्र में संयुक्त महाराष्ट्र समिति अपने जहरीले और भडकीले प्रचार से असंतोष की आग सतत प्रज्वलित रखे हुए थी । गुजरात में महागुजरात जनता परिषद का नेतृत्व ही साम्यवादी हाथों में चला गया था । महाविदर्भवादी अलग चिल्ला रहे थे । प्रचार के दिनों में काँग्रेसियों के साथ अशिष्ट व्यवहार किया गया । उनकी अर्धियाँ निकाल, सार्वजनिक रूपसे दहन विधि सम्पन्न की गई । व्यक्तिगत आक्षेपों से वातावरण दूषित बन गया था । अहमदाबाद में बम्बई राज्यीय शिक्षामंत्रिणी सुश्री इन्दुमती सेठ को कार से खींच कर बाहर निकाला गया । एक और मंत्री श्री बाबुभाई पटेल को उपर की मंजिल से फेंक दिया गया । पूना की गली और वाडों पर तख्खियाँ लगाई गई कि हमारे मत समिति को हैं काँग्रेसजन भूल कर भी यहाँ न आये । जगह-जगह काँग्रेस की प्रचार-सभाओं में पत्थरफेंक की गई । काँग्रेसी उम्मिदवारों के घर पर पिकेटिंग की गई । यशवंतराव जिस कराड मतदार संघ से चुनाव लड रहे थे वहाँ उन्हें पटकने के लिए समिति वालों ने कसमें खा रखी थीं । श्री मोरारजी देसाई, खंडूभाई देसाई, कन्नमवार, स. का. पाटील, काकासाहब गाडगील, प्रांताध्यक्ष नायक-निंबालकर आदि को चुनाव रणांगण में परास्त करने के लिए समिति-परिषदने विविध योजनाएँ बनाई । चुनाव संपन्न हुए । श्री मोरारजी, स. का. पाटील, कन्नमवार और हमारे चरित्रनायक ने अपने प्रतिस्पर्धियों को बुरी तरह मात किया । काकासाहब गाडगील, पाटसकर, तुलसीदास जाधव, खंडुभाई देसाई, सुश्री इन्दुमती सेठ, बाबुभाई पटेल आदि रण खेत रहे । कच्छ, सौराष्ट्र, विदर्भ, मराठवाडा, बम्बई में काँग्रेस के उम्मिदवार बडी संख्या में चुन कर आये । केवल महाराष्ट्र-गुजरात में उन्हें मुँह की खानी पडी । लेकिन बम्बई विधान सभा में काँग्रेस-दल को निर्विवाद बहुमत प्राप्‍त हुआ था ।

यशवंतराव का चुनाव-परिणाम घोषित होते ही विशाल द्विभाषिक के एक छोर से दूसरे छोर तक प्रसन्नता की लहर छागई । काँग्रेस दल की खुशी का पारावार न रहा । विरोधियों को सीधे संघर्ष में बुरी तरह से मात होना पडा था । देशके वरिष्ठ नेताओंने बधाई दी । चारों ओर से अभिनंदन के तार और संदेश प्राप्‍त हुए । अंग्रेजी, हिन्दी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं में प्रकाशित होते अखबारों ने अग्रलेख लिख कर उन्हें गौरवान्वित किया । उस अवसर पर विदर्भ के वयोवृद्ध नेता और बिहार प्रदेश के भूतपूर्व राज्यपाल माननीय अणेजीने उनका अभिनन्दन कर उनकी कर्तव्यपरायणता, प्रशासनकौशल्य एवं अद्‍भुत कुटनीतिक-शक्ति की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए लिखा कि, कराड मतदार संघ से सीधे संघर्षमें आपका निर्वाचित होना अर्थात् संयुक्त महाराष्ट्र के मुकाबले विशाल द्विभाषिक को जनता द्वारा दिया गया प्रशस्ति-पत्र ही है । कराडके मतदार बन्धुओं का हार्दिक आभार-प्रदर्शन करते हुए यशवंतरावने कहा : ''मेरा इस निर्वाचन में सफल हो जाने का अर्थ विशाल द्विभाषिक को जनता-जनार्दन द्वारा मिला आशीर्वाद ही मैं समझता । यह मेरी निजी सफलता न हो, सारे काँग्रेस दल की है । जनता स्थानीय समस्याओं के बदले राष्ट्रीय समस्याओं को अधिक महत्व प्रदान करती है यह मेरी सफलता से सिद्ध होता है ।''

चुनाव संपन्न हुए । पिछली विधान सभा के अनेक परिचित चेहरे इस बार निर्वाचन के रणांगण में पराजित हुए । समिति-परिषद के भस्मासुरने अनेक रचनात्मक एवं निस्पृह कार्यकर्ताओं के अपने विषैले प्रचार के बल पर बलि लिया था । विराधियों की संख्या में ठीक-ठीक वृद्धि हुई । विधान सभा काँग्रेस दल के नेता की चुनाव तिथि ५ अप्रेल १९५७ थी । महाराष्ट्र में काँग्रेस दल की स्थिति डाँवाडोल हो उठी थी । चुनावमें उसे बुरी तरह से पराजित होना पडा था । काँग्रेसान्तर्गत असंतुष्ट गुट इसका सारा दोष यशवंतराव के मत्थे मढ रहा था । जनता में यह भी अफवाह गर्म थी कि महाराष्ट्र में हुई काँग्रेस-दल की करुण पराजय के परिणामस्वरूप काँग्रेस श्रेष्ठि-वर्ग यशवंतराव पर सख्त नाराज है । अतः इस बार मुख्य मंत्री के पद के लिए इन्हें कोई अवसर नहीं बल्कि विदर्भ के कोई पुराने नेतादल के नेता बननेवाले हैं । इस प्रचार आन्दोलन के पीछे विरोधी दलों का हाथ था । वे सर्वसम्मति से चाहते थे कि यशवंतराव के समक्ष उनकी दाल न गलती थी । लाख प्रयास के बावजूद वे यशवंतराव को झुका न सके । हर चालमें उन्होंने यशवंतराव के मुकाबले मुँह की खाई थी । लेकिन उनकी आशा, निराशा में परिणत होगई जब उन्होंने सुना कि यशवंतराव सर्वसम्मति से विधायिका काँग्रेस दल के नेता निर्वाचित हुए हैं ।

दूसरे दिन बम्बई बन्दरगाह मजदूर संघ द्वारा आयोजित सत्कार-सभा में सम्मिलित होते हुए यशवंतरावने कहा : ''कुछ लोग काँग्रेस के खिलाफ 'महाराष्ट्र छोडो' के नारे लगा रहे हैं । लेकिन शायद वे भूल गये हैं कि महाराष्ट्र में काँग्रेस दल की पराजय होने के उपरांत भी उसे २० लाख मत प्राप्‍त हुए हैं । काँग्रेस विरोधक हर समय महाराष्ट्र के हितैषी होने का दावा करते हैं । लेकिन 'छोडो महाराष्ट्र' का नारा यह प्रदर्शित करता है कि वे आस्तीक के साँप हैं । वे महाराष्ट्र में सतरहवीं सदी का वातारण निर्माण कर यादवी मचाना चाहते हैं । लेकिन मैं सवीं बीसदी के वातावरण में नवमहाराष्ट्र का सर्वांगीण उत्कर्ष और प्रगति साधना चाहता हूँ ।'' अप्रेल १२ को मंत्रीमंडल गठन के पश्चात् आकाशवाणी के बम्बई केन्द्र से राज्यीय-प्रजा के नाम संदेश प्रसारित करते हुए उन्होंने कहा : ''लगभग छह माह के पूर्ण विशाल द्विभाषिक के उद्‍घाटन प्रसंग पर मैंने बताया था कि राष्ट्रीय-ऐक्य और पारस्परिक सद्‍भावना को टिकाने हेतु हमने एकभाषी राज्य के बदले द्विभाषिक को स्वीकार किया । जिस जनताजनार्दन की संसद यह प्रतिनिधित्व करनेवाली सर्वोच्च संस्था है, उसका मैं निष्ठावंत और नम्र सेवक हूँ फलतः लोकसभा की अपेक्षाओं को मूर्तरूप देनेका प्रामाणिक प्रयत्‍न किया । इस अर्से में हमें अनेक जटिल समस्याओंका और चन्द असंतुष्टवर्ग के प्रखर विरोध को सतत मुँह देना पडा । हमने अपनी प्रतिष्ठा को द्विभाषिक की कसौटी पर लगा कर उसे जनता-जनार्दन में लोकप्रिय बनाने का अहर्निश कार्य किया ।