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यशवंतरावजी चव्हाण व्यक्ति और कार्य -४२

सन् १९५२ के निर्वाचन-घोषणा पत्र के जरिये काँग्रेस ने भाषानुसार राज्यरचना का आश्वासन दिया था । तदनुसार सन् १९५३ के दिसम्बर में भारत सरकार ने एक त्रिसदस्यीय 'राज्यपुनर्गठन आयोग' के गठन की घोषणा की । आयोग के श्री फाजलअल्ली अध्यक्ष और पंडित हृदयनाथ कुंजरू तथा सरकार पण्णीकर सदस्य थे । आयोग का कार्य देश भर में दौरा कर वास्तविक परिस्थिति का मूल्यांकन कर भाषाई राज्य-रचनाविषयक सरकार को विवरण प्रस्तुत करना था । प्रत्येक प्रांत की भौगोलिक, ऐतिहासिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पार्श्वभूमि पर साधक-बाधक चर्चाएँ हुईं । संयुक्त महाराष्ट्र परिषदने अनेक तथ्य, प्रमाण एवं अकाट्य दलीलों के साथ बम्बई विदर्भ-मराठवाडा सह संयुक्त महाराष्ट्र की माँग रखी । लेकिन फाजलअल्ली आयोग का प्रतिवेदन प्रकाशित होने पर उनकी बौखलाहट और रोष का पारावार न रहा । आयोग ने एकभाषी राज्योंका समर्थन किया था । स्वतंत्र विदर्भ की माँग भी मान्य रखी थी । पर गुजरात महाराष्ट्र के स्वतंत्र राज्य की आशा पर तुषारापात किया था । बम्बई को राजधानी बना कर गुजरात और महाराष्ट्र को संतुलित द्विभाषिक की भेंट दी गई थी ।

फाजलअल्ली आयोग के प्रतिवेदन पर अपना मत व्यक्त करते हुए यशवंतरावने भारपूर्वक बताया कि बम्बई सह संयुक्त महाराष्ट्र की माँग समस्त महाराष्ट्र के साढे तीन करोड महाराष्ट्रीयनों की अधिकृत माँग है । उक्त माँग को फाजलअल्ली आयोगने बगल देकर जो अन्याय किया है - उसके कारण निखिल महाराष्ट्र में निराशा और असमाधान की भावना जागना--पैदा होना स्वाभाविक है ।

राज्य-पुनर्गठन आयोग का प्रतिवेदन प्रकाशित होने के बाद महाराष्ट्र की परिस्थिति दिन-ब-दिन बिगडने लगी । पहले ही अपनी संयुक्त महाराष्ट्र की योग्य माँग को ठुकराने के कारण जनता में वैफल्य की भावना निर्माण होगई थी । महाराष्ट्रीय मनों में सरकार द्वारा किये गये अन्याय के प्रति असंतोष की दबी आग धीरे धीरे सुलग रही थी । इस अवसर पर भूदान कार्यकर्ता श्री शंकरराव देवने कहा : ''राज्य-पुनर्गठन आयोग के सुझावों से किंचित् भी विचलित न होते हुए संयमी वृत्ति से हमें अपने संयुक्त महाराष्ट्र के ध्येय को साह्य करने हेतु आवश्यकता हुई तो शांतिमय आत्मक्लेष का मार्ग अपनाने के लिए तैयार रहना पडेगा ।'' उन्होंने संयुक्त महाराष्ट्र परिषद की कार्यसमिति में बताया कि फाजलअल्ली आयोग ने संयुक्त महाराष्ट्र के सुहाने स्वप्न को ही नष्ट कर दिया है । हमें अपना ध्येय साध्य करने के लिए केवल वाणी नहीं बल्कि कृति से काम लेना होगा । जनतंत्रीय पद्धति का अवलम्बन कर हमें यह आन्दोलन उठाना होगा ।

देश के अशांत वातावरण से काँग्रेस-श्रेष्ठि वर्ग चिंतित हो उठा । और उसने १४ अक्तूबर को काँग्रेस कार्य-समिति में एक प्रस्ताव पारित कर देश के समस्त काँग्रेसजनों को आदेश दिया कि राज्य-पुनर्गठन आयोग के प्रतिवेदन के कारण देश में मची खलबली में काँग्रेस कार्यकर्ता किसी प्रकारका सहयोग प्रदान न करे । अपनी प्रादेशिक माँगों की पूर्ति के हेतु अन्य दलों से हाथ न मिलाएँ । और इधर महाराष्ट्रीय नेताओं को संतुलित द्विभाषिक के कारण हुई आशाभंग से क्लान्त न होकर राष्ट्रीय ऐक्य टिकाने का समझाने के लिए दिल्ली बुलाया गया । दिल्ली जानेवाले महाराष्ट्र काँग्रेस के शिष्टमंडल में श्री शंकरराव देव, काकासाहब गाडगील, भाऊसाहब हिरे, कुंटे और हमारे चरित्रनायक का समावेश किया गया था ।

यशवंतराव खुद संतुलित द्विभाषिक के कट्टर विरोधी और संयुक्त महाराष्ट्र के प्रखर हिमायती थे । फाजल अल्ली आयोग के सुझावों से वे भी सख्त नाराज थे । पर दिल्ली-वार्ता के लिए जाने के पहले उन्होंने कहीं प्रक्षोभक भाषण या चर्चा न की । महाराष्ट्र प्रादेशिक कार्यकर्ताओं के साथ इस प्रश्नको लेकर प्रायः विचार-विनिमय होता ही रहता था । अतः वे उनके विचारों को आत्मसात् कर सके थे । लेकिन अपने मतदार संघ के कार्यकर्ताओं के विचार जानने के लिए और एकाध नई नीति का अवलम्बन करने का अवसर आजाय तो उनका साथ चिरस्थायी बन जाय इस हेतु से उन्होंने कराड के शिवाजी विद्यामंदिर में सातारा जिला, कराड तहसील एवं कराड के २५-३० निमंत्रित कार्यकर्ताओं की एक बैठक बुलाई । हालाँकि बैठक निजी तौर की थी लेकिन उसमें संयुक्त महाराष्ट्र से सम्बंधित हर पहलु पर साधक-बाधक चर्चा कर अपने विचार व्यक्त करने की प्रत्येक कार्यकर्ता को छूट थी । यशवंतरावने विषय का विशद विवेचन करते हुए अपनी नीति सबके सामने रखी और बाद में उपस्थित सभी कार्यकर्ताओं के विचार शांतिसे सुने । चार-पाँच कार्यकर्ताओं को छोड दे तो सभी का रुख माँग-पूर्ति के लिए शांतिमय आन्दोलन की ओर था । तब यशवंतराव ने आन्दोलन की परिधि की चर्चा करते हुए प्रजातंत्र के जमाने में अपनी बात की पूर्ति के लिए कितनी हद तक जाया जा सकता है - इसका स्पष्टीकरण किया । और प्रजातांत्रिक सर्वोच्च सत्ता भारतीय संसद जब तक कोई ठोस निर्णय न ले, संयुक्त महाराष्ट्र का पुरस्कार करने का और बादमें संसद का निर्णय एक मत से शिरोधार्य करने का निर्णय कर दिल्ली वार्ता के लिए गमन किया ।