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यशवंतरावजी चव्हाण व्यक्ति और कार्य -३४

दिल्लीमें १७, १८, १९ अक्तुबर १९५५ लगातार तीन दिन तक काँग्रेस श्रेष्ठि-वर्ग और महाराष्ट्र काँग्रेस प्रतिनिधि मंडल में राज्य पुनर्गठन के प्रश्न को लेकर वार्ता जारी रही । लेकिन कोई निश्चित निर्णय नहीं हो रहा था । काँग्रेस श्रेष्ठिवर्गने काफी सोच विचार के अंत में 'त्रि-राज्य योजना' विचारार्थ प्रस्तुत की । इससे तो प्रतिनिधि मंडल की रही-सही आशा भी जाती रही । क्योंकि उनकी नीति अंत तक संयुक्त महाराष्ट्र के प्रश्न पर अडिग रहने की थी । कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था ऐसे प्रसंग पर श्री शंकरराव देवने अपने सहयोगियों को बताया कि वे आज विशाल द्विभाषिक की योजना रखनेवाले हैं । यशवंतराव को श्री देव की योजना कतइ पसंद न आई ! उन्होंने प्रतिनिधि-मंडल के साथ जाने से ही इन्कार कर दिया । लेकिन अन्य सहयोगियों के अत्यधिक दबाव डालने पर गये । तत्पश्चात् विशाल द्विभाषिक का वही प्रस्ताव २१ अक्तूबर को महाराष्ट्र प्रदेश की सामान्य सभा में सर्वसम्मति से पारित हुआ । संयुक्त महाराष्ट्र के इन्कार की पीडा अभी भी यशवंतराव को पीड रही थी । विशाल द्विभाषिक का समर्थन करते हुए भी यशवंतराव की संयुक्त महाराष्ट्र की निष्ठा कायम थी । ''महाराष्ट्र की माँग को ठुकराना उसका उपमर्द करना है । बम्बई सह संयुक्त महाराष्ट्र की माँग का अस्वीकार यह भारतने विदेशी उपनिवेशवाद को नष्ट कर दिया है फिर भी देशी उपनिवेशवाद को खत्म करने में वह असमर्थ सिद्ध हुआ है इसका ज्वलंत उदाहरण हमें अपने मूलभूत अधिकार के लिए प्रदीर्घ काल तक मोर्चा लेना होगा । हमारी मंझील अभी बहुत दूर है । फिर भी मैं इस प्रस्ताव का इसलिए समर्थन कर रहा हूँ कि वर्तमान स्थिति में यही योग्य है । और इसकी कल्पना हमारे दिग्गज नेता श्री शंकरराव देव की गांधीवादी विचार-धारा से सुसंगत है ।''

महाराष्ट्र प्रदेश काँग्रेस समिति ने एक प्रस्ताव मान्य कर काँग्रेस कार्य समिति को अपने पिछले प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया । उक्त प्रस्ताव का समर्थन करते हुए यशवंतरावने बताया कि संयुक्त महाराष्ट्र की ओर केवल सैद्धांतिक-दृष्टिकोण से न देखते हुए उसके हर पहलु पर सूक्ष्मता से विचार करना चाहिए । जिन सिद्धांतों के लिए आज काँग्रेस जुझती आ रही है उन्हीं सिद्धांतों का अनुशरण कर हमें दल-निष्ठा के चौखटे में बने रह कर अपना आन्दोलन चलाना है और संयुक्त महाराष्ट्र का स्वप्न साकार करना है । हमें ऐसा कोई कार्य नहीं करना है जिससे राष्ट्रीय एकता, दृढता और सामर्थ्य को धोका पहुँचता हों । काँग्रेस श्रेष्ठि वर्ग की 'त्रिराज्य योजना' से संयुक्त महाराष्ट्र की हमारी माँग को बल मिला है और हम अपनी मंझील के और नजदीक आगये हैं । अब हमें उसे पूर्ण करने के लिए योग्य वातावरण की निर्मिति और विरोधियोंका हृदय परिवर्तन की दिशा की ओर प्रयाण करना है । अतः आन्दोलन, निर्देशन और हडताल जैसे कार्यक्रम के लिए हमारी योजना में कोई स्थान नहीं है और इस बात को काँग्रेसजन भली-भाँति समझ लें तभी हमारी विजय है ।''

२० नवम्बर की श्री मोरारजी देसाई की चौपाटी की आम सभा में संयुक्त महाराष्ट्रवादियों ने मन का तोल छोड दिया । काफी हुल्लडबाजी और पत्थरफेंक हुई । अशांत जनताने २१ नवम्बर को पुनः विधान सभा के द्वार पर निर्देशन करने का निश्चय किया था । इधर महाराष्ट्र प्रदेश काँग्रेसने बम्बई विधायिका काँग्रेस दल के सदस्यों से त्यागपत्र लेने का अभियान शुरू कर दिया । उस समय विधान सभा में ९४ और विधान परिषद में १७ सदस्य महाराष्ट्र से निर्वाचित थे । सभीने अपने त्याग-पत्र महाराष्ट्र प्रदेश काँग्रेस के हवाले कर दिये । त्यागपत्र अभियान के पीछे श्री शंकरराव देव की प्रेरणा काम कर रही थी और भाऊसाहब हिरे की कर्तृत्वशक्ति । हालाँकि दल का ऐसा कोई स्पष्ट निर्देश और अधिकृत प्रस्ताव न था । अतः यशवंतराव ने त्यागपत्र देने से इन्कार करते हुए स्पष्ट शब्दों में घोषित किया कि इस समय त्यागपत्र देने का अर्थ होगा वर्तमान उलझी हुई परिस्थिति से हम डर गये हैं । इससे हमारी ध्येयपूर्ति न होगी बल्कि अराजकता और अशांति को ही प्रोत्साहन देना होगा । साथ ही महाराष्ट्र प्रदेश का ऐसा कोई प्रस्ताव और आदेश भी नहीं है । अगर हां, महाराष्ट्र काँग्रेस को विचार-विनिमय के लिए जरा भी समय न हो और प्रदेशाध्यक्ष को जल्दी हो तो वे लिखित आदेश दें, मैं किसी भी समय त्यागपत्र देने के लिए प्रस्तुत हूँ । यशवंतराव की स्पष्टवादिता से प्रभावित हो कर चौबीस घंटे के भीतर ही प्रदेशाध्यक्ष ने त्यागपत्र-अभियान बंद करवा दिया । उलझी समस्या को सुलझाने के लिए वैचारिक आदान-प्रदान करने का और समय मिले इस आशय से बम्बई विधान सभा में मुख्य मंत्री श्री मोरारजी देसाई द्वारा प्रस्तुत 'त्रिराज्य योजना' पर होनेवाली चर्चा अनिश्चित समय तक स्थगित रखने की उपसूचना पेश करते हुए श्री भाऊसाहब हिरे ने कहा : ''महाराष्ट्र प्रदेश काँग्रेस द्वारा स्वीकृत प्रस्ताव का सम्बंधित लोग सखोल अभ्यास कर, तत्कालीन परिस्थिति का आकलन करने में सफल हो सकें - इसके लिए पर्याप्‍त समय की आवश्यकता है और इस आवश्यकता को महसूस करते हुए त्रिराज्य योजना की चर्चा अनिश्चित समय स्थगित रखें - ऐसी मैं सभागृह से प्रार्थना करूँगा । लेकिन कोई यह न समझ लें कि प्रस्तुत स्थगन प्रस्ताव पेश करने का मतलब हम अशांति और अराजकता भरे वातावरण से डर गये हैं । महाराष्ट्र से निर्वाचित सभी काँग्रेस विधायक काँग्रेस के अनन्य सेवक हैं और मरते दम तक अपनी काँग्रेस निष्ठा टिकाये रखेंगे ।''